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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ सू. ६ ज्ञानभेदनिरूपणम्
३८५ हे गौतम ! यथा सिद्धाः केवलज्ञानलक्षणैकज्ञानिनः प्रतिपादितास्तथा नोपर्यातकनोअपर्याप्तकाः सिद्धा जीवाः केवलज्ञानलक्षणेकज्ञानिन एव भवन्ति, न द्वयादिज्ञानिनः, नो वा द्वयाद्यज्ञानिनो भवन्ति । अथ सप्तमं भवस्थद्वारमाह'निरयभवत्थाणं भंते ! जीवा कि नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! निरयभवस्थाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह'जहा निरयगइया' हे गौतम ! यथा निरयगतिकास्त्रिज्ञानिनः, द्वधज्ञानिनस्त्र्य ज्ञानिनश्चोक्तास्तथा निरयभवस्था अपि प्राप्तनिरयभवोत्पत्तिकाः जीवाः नियमतहैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'जहासिद्धा' हे गौतम ! जैसे सिद्ध जीव केवलज्ञानरूप एकज्ञानसे ज्ञानी होते हैं उसी प्रकारसे जो जीव नो पर्याप्त और नो अपर्याप्तक होते हैं वे भी सिद्धजीवोंके जैसे ही एक केवलज्ञानरूप ज्ञानसे ज्ञानी होते हैं दो आदिज्ञानोंसे ज्ञानी नहीं होते हैं और न दो आदि अज्ञानोंसे अज्ञानी होते हैं। क्योंकि नोपर्याप्तक और नोअपर्याप्तक सिद्ध ही होते हैं। अब सूत्रकार सातवें भवस्थद्वारको लेकर ज्ञानी और अज्ञानीकी प्ररूपणा करते हैं इसमें गौतम प्रभुसे ऐसा पूछ रहे हैं 'निरय भवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव निस्यभवस्थ हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहानिरयगइया' हे गौतम ! जिस तरहसे निरयगतिकजीव विज्ञानी और दो या तीन अज्ञानी कहे गये हैं, उसी तरह निरयभवस्थ प्राप्तनिरयभवोत्पत्तिक मज्ञानी डाय छ ? उत्तर 'जहा सिद्धा' गौतम ! २ शते सिद्ध १७॥ જ્ઞાનરૂપ એક જ્ઞાનવાળા હોય છે. તેવી જ રીતે જે જીવ નો પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક હોય છે તે પણ સિદ્ધ ની જેમ એક કેવળજ્ઞાન રૂ૫ જ્ઞાનથી જ્ઞાની હોય છે. બે આદિ શાનથી જ્ઞાની હતા નથી તેમજ બે આદિ અજ્ઞાનથી અજ્ઞાની હતા નથી કેમકે ને પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક સિદ્ધ જ હોય છે. હવે સૂત્રકાર સાતમા ભવસ્થાનને
देशाने शानी मने अशानीना विषयमा ५३५६॥ छ. प्रश्न:- 'निरयभवत्थाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे पान ! २ ७५ नियम१२थ छे ते ज्ञानी હોય છે કે અજ્ઞાની હોય છે ?
उत्तर :- 'जहा निरयगइया' गौतम २ शत निश्यति ® ! જ્ઞાનવાળા અને બે કે ત્રણ અજ્ઞાનવાળા કહ્યા છે. એ જ રીતે નિરયભવસ્થ જીવ નિયમથી
शान मने मनाथी रे अज्ञान भने त्र माना जाय छे. प्रश्न:- तिरिय
श्री. भगवती सूत्र :