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________________ ३६० भगवतीम्रो अज्ञानिनः ? यथा सकायिकाः, पर्याप्ताः खलु भदन्त ! नैरयिकाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि नियमात्, यथा नैरयिकाः, एवं यावत्-स्तनितकुमाराः । पृथिवीकायिकाः यथा एकेन्द्रियाः, एवं यावत् चतुरिन्द्रियाः पर्याप्ताः खलु भदन्त ! पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः किंज्ञानिनः अज्ञानिनः? त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया । मनुष्या यथा सकायिकाः। वानव्यन्तराः, भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ) हे भदन्त ! पर्याप्त जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( जहा सकाइया) हे गौतम ! पर्याप्तजीव सकायिक जीवोंकी तरह जानना चाहिये । ( पजत्ता णं भंते ! नेरइया किं नाणी, अन्नाणी) हे भदन्त ! पर्याप्त नारकजीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं । (तिण्णि नाणा, तिन्नि अन्नाणा नियमा) हे गौतम ! पर्याप्त नारकजीवोंके नियमसे तीनज्ञान और तीनअज्ञान होते हैं । (जहा नेरइया एवं जाव थणियकुमारा) इसी तरहसे यावत् स्तनितकुमारोंको भी जानना चाहिये । (पुढविकाइया जहा एगिदिया, एवं जाव चउरिंदिया) जैसा एकेन्द्रियजीवोंके विषयमें कहा गया है उसी तरहसे पृथिवीकायिकोंको जानना चाहिये इस तरहसे यावत् चौहन्द्रियजीवोंतक जानना चाहिये । (पज्जत्ता णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! पर्याप्त पंचेन्द्रियतिर्यञ्च क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होतेहैं ? (तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए ) हे गौतम ! पर्याप्त पंचेन्द्रियतिर्यञ्चोंमें भजनासे तीनज्ञान और तीनअज्ञान होते हैं। (मणुस्सा'पजत्ताणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' 3 महन्त ! पर्याप्त ज्ञानी जय छे ॐ भज्ञानी ? तिन्नि नाणा, तिन्नि अन्नाणा नियमा' के गौतम ! पर्याप्त ना२४७वाने नियमथी त्र ज्ञान मन नए अज्ञान होय छे. 'जहा नेरइया एवं जाव थणियकुमारा' मे शत यावत- तमितभाशा विषयमा ५ सम से. 'पुढविकाइया जहा एगिदिया, एवं जाव चउरिदिया' वी शत मेन्द्रीयन। વિષયમાં કહ્યું છે તેવી રીતે ચઉરિદિય જીવો પર્વતના વિષયમાં સમજી લેવું. 'पज्जत्ताणं भंते पचिंदिय तिरक्खजोणिया कि नाणी अन्नाणी' पर्याप्त पयन्द्रिय तिमय शुशानी 34 3 अज्ञानी ? तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए' उ गौतम! AREयी तमामात्र ज्ञान अनेत्र मशान डाय छे. मणुस्सा जहा श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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