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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ सू.६ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३५९ सकायिकाः, अकायिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथा सिद्धाः ३ । सूक्ष्माः खलु भदन्त । जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथा पृथिवीकायिकाः। बादराः खलु भदन्त । जीवाः किं ज्ञानिनः अज्ञानिनः ? यथा सकायिकाः । नोमूक्ष्मा नोबादराः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथा सिद्धाः ४ । पर्याप्ताः खल भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, और श्रताअज्ञान ये दो अज्ञान होते हैं। यही बात (तंजहा-मइअन्नाणी घ, सुयअनाणी य) इस पाठ द्वारा कही गई है । (तसकाइया जहा सकाइया) सकायिक जीव सकायिक जीवोंकि तरह होते हैं । (अकाइयाणं भंते ! जीवा किं नाणी अनाणी) हे भदन्त ! अकायिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (जहा सिद्धा) हे गौतम! अकायिक जीव सिद्धोंकी तरह ज्ञानी ही होते हैं अज्ञानी नहीं । (सुहमाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणा) हे भदन्त ! सूक्ष्मजीव क्या ज्ञानी होते हैं ? या अज्ञानी होते हैं (जहा पुढविकाइया) हे गौतम ! सूक्ष्मजीव पृथिवीकायिक जीवोंकी तरह अज्ञानी ही होते हैं। (बादराणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! बादरजीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (जहा सकाइया) हे गौतम ! बादरजीव सकायिकजीवोंकी तरह होते हैं । (नो सुहुमा, नो बादराणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त नोसूक्ष्म, नाबादरजीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (जहां सिद्धा) हे गौतम ! नो सूक्ष्म नोबादरजीव सिद्धोंकी तरह ज्ञानी ही होते हैं। (पजत्ता णं 'तजहा मइ अन्नाणी य, सुय अन्नाणी य ' से पा४थी ४पामा माल्यु छ. ( तसकाइया जहासकाइया) सायि४७५ स450वानी भा३४ होय छे. 'अकाइयाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवन ! ५५७१ ज्ञानी उय छ : अज्ञानी? 'जहा सिद्धा' हे गौतम! यि सिद्धोनी भा शानी ०४ हेय छे. 'मुहमाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हेमन्त ! सक्षम 4 सनी लेय छ है ज्ञानी ! 'जहा पदविकाइया' गौतम ! सक्षम पृथ्वी [45 वानी भा३: मज्ञानी खाय . 'बादराणं भंते जीवा कि नाणी अन्नाणी' हे भगवन ! मा शुशानी हाय छ है मज्ञानी ? 'जहा सकाइया' हे गौतम ! मा६२७५ सायि:- शरीरवाणा वानी भा३४ डाय छे. 'नोमुहमा नोबादराणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' गवन! ना सक्ष्म, न मा.२ ७१ ज्ञानी य छ । मज्ञानी ! 'जहा सिद्धा' हे गौतम! तेमा सिद्वानी भा४ शानी डाय छे.
श्री. भगवती सूत्र :