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________________ ३२८ भगवतीसूत्रे एकके चतुर्जानिनः, 'अत्थेगइया एगनाणी' सन्ति एकके एकज्ञानिनः इति, तदेव विशदयन्नाह-'जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी य, मुयनाणी य' 'ये जीवा द्विज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनश्च, श्रुतज्ञानिनश्च भवन्ति, 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी मुयनाणी, ओहिनाणी' ये जीवास्त्रिज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिन्ः, अवधिज्ञानिनो भवन्ति, 'अहवा आभिणियोहियनाणी, सुयनाणी, मणपज्जवनाणी' अथवा त्रिज्ञानिनो जीवा आभिनिवाधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनो भवन्ति, 'जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणो, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपजवणाणी' ये जीवाश्चज्ञानवाले होते हैं 'अत्थेगइया तिन्नाणी' कितनेक जीव तीनज्ञानवाले होते हैं 'अत्थेगइया चउनाणी' कितनेक जीव चारज्ञानवाले होते हैं 'अत्थेगइया एगनाणी' और कितनेक जीव एकज्ञानवाले होते हैं । इसी बातको विशद करनेके अभिमायसे सूत्रकार कहते है 'जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी य, सुयनाणीय' जो जीव दो ज्ञानवाले कहे गये हैं वे आभिनीबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान इन दो ज्ञानवाले हैं 'जे तिन्नाणी ते आभिणियोहियनाणी, सुयनाणी, ओहि. नाणी' जो जीव तीन ज्ञानवाले कहे गये हैं वे आभिनियोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानोंवाले होते हैं ' अहवा' आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, मणपज्जवनाणी' आभिनियोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और मनःपर्यवज्ञान इन तीन ज्ञानवाले होते हैं । 'जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहियनाणी, मणपज्जवत पेटीalk १ मे साना राय छे. 'अत्थेगइया तिन्नाणी' 32८४ ७१ र शाना खाय छे. 'अत्थेगइया चउनाणी' ०५ यार ज्ञानवाणा होय छे 'अत्थेगइया एगनाणी' भने ४ा मे शानी डाय छे ये ४ वातने २५५८ ४२वाना अभिप्रायथी सूत्रा२ ४ छ 3 'जे दुन्नाणी ते आभिनिबोहियनाणी य, सुयनाणी य' ०१ मे शानदाणा ४ छ त भामिनिमाधिः शान भने श्रुतज्ञान में मे शान छे. 'जे तिन्नाणी ते आभिनिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिय नाणी, २१ ज्ञानवाणi sa छे ते मानिनिमाधि ज्ञान, श्रुतज्ञान भने अवधिज्ञानani सय छ. 'अहवा आभिनिबोधिय नाणी, सुय नाणी, मण्णपज्जव नाणी' मालिनिमोनिशान, श्रुतज्ञान मने मन:पवज्ञानवाजा खोय छे. 'जे चउनाणी ते आभिणिवोहिय नाणी, मुय नाणी ओहिनाणी मणपज्जव नाणी' Hindi श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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