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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ सू.२ पुद्गलभेदनिरूपणम् कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-मूक्ष्मपृथिवीकायिक केन्द्रियप्रयोगपरिणताश्च, बादरपृथिवीकायिकैकेन्द्रियप्रयोगपरिणताश्च । अप्कायिकैकेन्द्रियपयोगपरिणता एवमेव । एवं द्विपदो भेदो यावत् बनस्पतिकायिकाश्च । द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणताःखलु पृच्छा ? गौतम ! अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, दियपओगपरिणया) पृथिवी कायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गल, यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियपयोगपरिणतपुद्गल (पुढविकाइयएगिदियपओगपरिणयाणं भंते ! पोग्गला काविहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणतपुद्गल कितने प्रकारके कहे गये हैं ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! पृथिवी. कायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणतपुदगल दो प्रकारके कहे गये हैं (तंजहा) जो इस प्रकारसे हैं (सुहम पुढविकाइयएगिंदयपओग. परिणया य बायर पुढविकाइयएगिदिय पओगपरिणया य) सूक्ष्म पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणतपुद्गल, बादर पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणतपुद्गल (एवं चेव) इसी तरहसे (आउकाइयएगिदियपओगपरिणया) अप्कायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गल दो प्रकार के होते हैं (एवं दुप्पयओ भेदो जाव वणस्सइकाइया य) इसी तरह से यावत् वनस्पतिकायिक प्रयोगपरिणतपुद्गल भी दो प्रकारके होते हैं। (बेइंदियपओगपरिणया णं पुच्छा) हे भदन्त ! दो इन्द्रिय प्रयोगपरिणतपुद्गल कितने प्रकारके कहे गये हैं ? (गायमा) हे ( यावत् ) वनपतिथि: मेन्द्रिय प्रयोगपरित Y६८. ( पुढविकाइयएगिदिय पओगपरिणयाण भते! पोग्गला काविहा पण्णता ?) हुँ महन्त ! पृथ्वीयि: मेन्द्रिय प्रयोगपरित पु६५८ ना ४३i छ ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) हु गौतम! १५४ मेन्द्रिय ५योगपरिणत पुलना मे ४२ ४च्या छे. (तंजहा ते ४।३॥ २AL प्रमाणे - ( सुहुम पुढविकाइय-एगिदियपओगपरिणया य वायर पुढविकाइय एगिदियपोगपरिणया य ) (१) सुक्ष्म 24114s मेन्द्रिय प्रयोगपरिन पुस, (२)मा६२ वीयि मेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुल. (एवं चेव) मे १ प्रमाणे (आउकाइयएगिदियपओगपरिणया ) २५५४।५४ मेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुस ५७ मे २ना डाय छे. (एवं दुप्पयो भेदो जाव वणस्सइ. काइया य) १ प्रमाणे वनस्पतिय पर्य-तना मेन्द्रियप्रयोगपरिणतपुराना ५५५ रे २ सभा . ( बेइंदियपओगपरिणयाण पुच्छा ) हे मान्त ! दीन्द्रिय प्रयोगपरित पुगतना मा ४२ या छ ? (गोयमा!) गौतम ! (अणेगविहा श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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