SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ " प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ सू.१३ सूक्ष्म पृथ्वी काय स्वरूपनिरूपणम् १५९ द्रव्यं वचःप्रयोगपरिणतं तत् किं सत्यवचः प्रयोग परिणतं भवति, मृषावच:प्रयोगपरिणतं भवति ? एवं जहा मणप्पओगपरिणएण, तहा वयप्पओरिएण वि' एवं यथा मनःप्रयोगपरिणतेन तथा वचःप्रयोगपरिणतेनापि यथामनः प्रयोगपरिणतेनालापका उक्ताः तथा वचःप्रयोगपरिणतेनापि आलापकाः पड़ वक्तव्या इत्यर्थः 'जाव असमारंभवयप्पओगपरिणएण वा' यावत्-वचःप्रयोगपरिणत द्रव्यं सत्यवचः प्रयोगपरिणत वा भवति, मृषावचः प्रयोगपरिणत वा भवति, सत्यमृपावचः प्रयोगपरिणतं वा भवति, असत्यामृषावचः प्रयोगपरिणत वा भवति, एवम् आरंभवचः प्रयोगपरिणतं वा भवति, अनारंभवचः प्रयोगपरिणत वा भवति, संरम्भवचःप्रयोगपरिणत वा भवति, असंरम्भवचः प्रयोगपरिणतं वा भवति, समारम्भवचःप्रयोगपरिणत वा भवति, असमारम्भवचःप्रयोगपरिणत वा प्रयोगपरिणत होता है, वह क्या सत्यवचनप्रयोगपरिणत होता है, या मृषावचःप्रयोग परिणत होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'एवं जहा मणपओगपरिणए तहा वयप्पओगपरिणए वि' हे गौतम ! जिसप्रकार मनःप्रयोग परिणतका कथन किया गया है, उसी प्रकारका वचन प्रयोगपरिणतका भी कहदेना चाहिये । तात्पर्य कहनेका यह है कि जिस प्रकार से ६ आलापक मनः प्रयोगपरिणतके साथ कहे हैं उसी प्रकार से ६ आलापक वचःप्रयोगपरिणतके साथ भी कहना चाहिये । 'जाव असमारंभ वयप्पओगपरिणए वा' यावत् ( वच: प्रयोगपरिणत द्रव्य सत्यवचन प्रयोग परिणत होता है, या मृषावचनप्रयोगपरिणत होता है, सत्यमृषावचः प्रयोगपरिणत होता है, असत्यामृषावचः प्रयोगपरिणत होता है । इसी तरहसे वह आरंभवचःप्रयोगपरिणत होता है। संरंभवचःप्रयोगपरिणत होता है असंरंभवचः प्रयोगपरिणत होता है, तथा સત્યવચન उत्तर - एवं जहा मणप्पओगपरिणए तहा वयप्पओगपरिणए वि' हे गौतम! જેવી રીતે મનઃપ્રયાગપરિણત દ્રવ્યની સાથે છ આલાપક કહેવામાં આવ્યા છે, એજ अभाषे वयनप्रयोगपरित द्रव्यनी साथै पशु खासायो, अहेवाले 'जाव असमारंभचयप्पओगपरिणएण वा 1 એટલે કે વચનપ્રયોગપરિણતદ્રવ્ય પ્રયાગપરિણત પણ હોય છે, મૃષાવચનપ્રયોગપતિ પણ હેાય છે, સત્યમૃષાવચનપ્રયાગપતિ પણ હોય છે, અત્યામૃષાવચનપ્રયાણ પરિણત પણ હોય છે. એજ પ્રમાણે તે આર ભવચ:પ્રયાગપરિણત પણ હોય છે, અનાર ભવચ:પ્રયાગપરિણત પણ હાય છે, સરભ– વચ:પ્રયોગપરિણત પણ હાય છે, અસÖભવચઃપ્રયાગપરિણત પણ હોય છે, સમાર ભવચઃ પ્રયાગપરિત પણ હોય છે અને અસમાર ભવચ:પ્રયોગપરિણત પણ હાય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy