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भगवतीसूत्रो णए किं तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए. मणुस्सपंचिंदिय-जाव-परिणए ? गोयमा ! तिरिक्खजोणिय-जाव-परिणए वा, मणुस्सपंचिंदिय-जाव-परिणए वा। जइतिरिक्ख जोणिय जाव परिणए किं जलयरतिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा, थलयर०, खहयर०, एवं चउक्कओ भेओ जाव खहयराणं । जइ मणुस्सपंचिंदिय-जाव-परिणए कि संमुच्छिममणुस्सपंचिंदिय-जाव-परिणए, गब्भवतियमणुस्स-जाव-परिणए ? गोयमा ! दोसुवि। जइ गब्भवक्रतियमणुस्स-जाव परिणए किं पज्जत्तगब्भवतिय-जाव-परिणए, अपजत्तगब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए ? गोयमा ! पजत्तगब्भवक्कंतिय-जाव-परिणए वा ?” ॥सू० १३॥
छाया-एकं भदन्त ! द्रव्यं किं पयोगपरिणतम् , मिश्रपरिणतम्, विस्रसापरिणतम् ? गौतम ! प्रयोगपरिणतं वा, विस्रसापरिणतं वा । यदि प्रयोग
एकपुदगलद्रव्यकीपरिणामवक्तव्यता'एगे भंते ! व्वे किंपओगपरिणए' इत्यादि । सूत्रार्थ-( एगे भंते ! दवे किंपओगपरिणए, मीसापरिणए, वीससापरिणए) हे भदन्त ! एकद्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, या मिश्रपरिणत होता है, या विनसापरिणत होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (पओगपरिणए बा, मीसापरिणए वा, वीससा परिणए वा) एकद्रव्यप्रयोगपरिणत भी होता है मिश्रपरिणत भी होता है या
એક પુલ દ્રવ્યપરિણુમ વતવ્યતાएगे भंते ! दवे किं पयोगपरिणए' त्या
सूत्राथ- (एगे भंते ! दव्वे किं पओगपरिणए, मीसापरिणए, वीससा परिणए ?' महन्त ! से द्र०५ शु प्रयोगपरिणत डाय छ? भित्रपरिणत डाय छ? 3 विससापरिगुताय छ? (गोयमा!) के गौतम! (पोगपरिणए, मीसा परिणए चा, वीससापरिणए वा) : द्र०य प्रयोगपरिशुत ५ ५ छ, भिश्र
श्री. भगवती सूत्र :