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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ २.७ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् ९५ न्धपरिणता अपि, दुरभिगन्धपरिणता अपि । रसतः तिक्तरसपरिणता अपि, कटुकरसपरिणता अपि, कषायरसपरिणता अपि, अम्लरसपरिणता अपि, मधुररसपरिणता अपि । स्पर्शतः कर्कशस्पर्शपरिणता यावत् रूक्षस्पर्श परिणताः । संस्थानतः परिमण्डलसंस्थानपरिणता अपि, वृत्तसंस्थानपरिणता अपि, व्यस्रसंस्थानपरिणता अपि, चतुरस्रसंस्थानपरिणता अपि, आयतसंस्थानपरिणता अपि । ये पर्याप्तकसूक्ष्मपृथिवी० एवमेव । एवं यथानुपूर्व्या ज्ञातव्यं यावत् सुन्भिगंधपरिणया वि, दुन्भिगंधपरिणया वि) गंधकी अपेक्षा सुरभिगंधरूपमें भी एवं दुरभिगंधरूपमें भी परिणत हो जाते हैं । (रसओ तित्तरसपरिणया वि, कडुयरसपरिणया वि, अंबिलरसपरिणया वि, महुररसपरिणया वि) रसकी अपेक्षा वे तिक्तरसरूपमें, कटुकरसरूपमें, कषायरसरूपमें, अम्लरसरूपमें, और मधुररसरूपमें भी परिणत होजाते हैं। (फासओ-कखडफास परि० जाव लुक्ख फासपरि.) स्पर्शकी अपेक्षा वे कर्कशस्पर्शरूपमें, यावत् रूक्षस्पर्श रूक्षमें भी परिणत होजाते हैं । ( संठाणओ-परिमंडलसंठाणपरिणया, वि. वट्ट० तंस चउरंस० आयपसंठाणपरिणया वि) संस्थानको अपेक्षा वे परिमंडल संस्थानरूपमें, वृत्त (गोल संस्थानरूपमें, व्यस्रसंस्थानरूपमें, चतुरस्रसंस्थानरूपमें और आयतसंस्थानरूपमें भी परिणत हो जाते हैं। (जे पज्जत्तसुहुमपुढवी० एवं चेव-एवं जहाणुपुवीए नेयव्वं-जाव जे पजत्तसव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइय जाव परिणया वि ते वण्णओ दुभिगंधपरिणया वि) अपनी अपेक्षा ते पुसा सुध३३ ५९ परिणभे छ मन हु ३५ ५५५ परिणभे छ. (रसओ तित्तरस परिणया वि, कटुयरस परिणया वि, कषायरस परिणया वि, अबिलरस परिणया नि, महुररस परिणया वि) २सनी अपेक्षा तो तिxa (ता ) २४३थे, ५४५॥ २४३५, पाय (तु२१) २५३थे, माटर २१३५ मने भ५२ २४३ ५५ परिशुभे छ. (फासओ-कक्वड फास परि० जाव लुक्खफास परि०) २५शनी अपेक्षा तया ४३ (४२) २५०३५ ५५ परिशुभ छ भने ३६ २५८३थे पर परिणभे छ. (संठाणओ - परिमंडलसंठाण परिणया वि, वट्ट० तंस. चउरंस० आययसंठाणपरिणया वि) संस्थानना (આકારની) અપેક્ષાએ તેઓ પરિમંડલ સંસ્થાનરૂપે પણ પરિણમે છે, ચતુરસ્ત્ર (ચતુષ્કોણ) સંસ્થાનરૂપે પણ પરિણમે છે અને આયત સંસ્થાનરૂપે પણ પરિણમે છે. (जे पजत्तमुहुम० पुढवि० एवं चेव-एवं जहाणुपुबीए नेयवं-जाव जे पजचसबसिद्ध अणुत्तरोववाइय जाव परिणया वि- ते वण्णओ कालवन श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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