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________________ " प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ सू. ६ सूक्ष्मपृथ्वीका यस्वरूपनिरूपणम् ९१ प्रयोगपरिणता एव भवन्ति । ' एवं एएणं अभिलावेणं जस्स जइंदियाणि सरीराणि य ताणि भाणियन्त्राणि' एवं रीत्या एतेन उपर्युक्तेन अभिलापेन rts for इन्द्रियाणि शरीराणि च प्रज्ञप्तानि तस्य तानि इन्द्रियाणि शरीराणि च भणितव्यानि, 'जाव जे य पज्जत्तसव्वट्टसिद्ध अणुत्तरोववाइय० जाव देवपंचिदियवेत्रियते याकम्मासरीरपओगपरिणया ते सोइंदिय - चक्खिदिय जान फार्सिदिय पञगपरिणया यात्रत- सूक्ष्माबादराः पर्याप्तकाः अपर्याप्तकाश्च अष्कायिक- तेजस्कायिक-वायुकायिक- वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियौदारि कतै जसकार्मणशरीरप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः प्रज्ञप्तास्तेऽपि केवलं स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति, एवं द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय-प्रयोगपरिणता णत हुए कहे गये हैं, वे भी केवल एक स्पर्शन इन्द्रियके प्रयोग से ही परिणत होते हैं । ' एवं एएणं अभिलावेणं जस्स जइंदियाणि सरीराणि य ताणि भाणियव्वाणि' इस प्रकार इस अभिलापके द्वारा जिस जीव के जितनी इन्द्रियां और जितने शरीर कहे गये हैं उस जीव के उतनी इन्द्रियां और उतने शरीर कहना चाहिये जाव जे य पज्जत्ता सव्वट्टसिद्ध अणुत्तराववाइय जाव देव पंचिंदिय बेविया कम्मासरीरपओगपरिणया ते सोइंदिय चक्खिदिय जाव फासिंदियपओगपरिणया' यावत्-सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक इनकी जो एक इन्द्रिय और औदारिक, तैजस एवं कार्मण शरीर हैं, इन सबके प्रयोग से जो पुद्गल परिणत हुए कहे गये हैं वे सब पुद्गल भी केवल एकस्पर्शन इन्द्रिय के प्रयोग से ही परिणत होते हैं । इसी तरह से द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों के प्रयोग से 'एवं एएणं अभिलावेणं जस्स जइंदियाणि सरीराणि य ताणि भाणियन्त्राणि ' આ પ્રકારના અભિલાપ દ્વારા જે જીવને જેટલી ઇન્દ્રિયા અને જેટલા શરીર કહ્યાં છે, તે જીવને એટલી ઇન્દ્રિયા અને એટલાં શરીર કહેવા જોઈએ. जात्र जे य पज्जतसब्बट्टसिद्ध अणुत्तरोववाइ य जात्र देव पंचिदियवेच्चियतेयाकम्मा सरीरपओगपरिणया ते सोइंदियचक्खिदिय जाव फासिंदियपओगपरिणया ' સમ, ખાદર, પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક અાયિક, વાયુકાયિક, તેજસ્કાયિક અને વનસ્પતિકાયિકની એક ઇન્દ્રિયના પ્રયોગથી અને ઔારિક, જસ અને કા`ણુ શ્રીરના પ્રયાગથી પરિણત જે પુદગલા કહ્યાં છે, તે પુદગલેા પણ એક માત્ર સ્પર્શેન્દ્રિયના પ્રયાગથી જ પરિણત હાય છે, એ જ પ્રમાણે દ્વીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિયના 6 માવત - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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