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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.९ मू.५ वरुणनागनप्तृकवर्णनम् ७६५ महावीरस्य अन्तिके सर्व प्राणातिपातं प्रत्याख्यामि यावज्जीवम्, एवं जहा खंदओ, जाव एयं पिणं चरमेहिं ऊसास-नीसासेहिं वोसिरामि-त्ति कटु सन्नाहपर्ट मुयइ' एवं यथा स्कन्दकः, स्कन्दकाचार्यवत् यावत् सर्व विज्ञातव्यम्, एतदपि शरीरम् खलु चरमैः उच्छवास-निःश्वासैः व्युत्सृजामि त्यजामि, इति कृत्वा सन्नाहपढें-कवचबन्धपढें मुञ्चति-परित्यजति, मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ' मुक्त्वा सन्नाहपढें परित्यज्य शल्योद्धरणं शल्यस्य बाणरूपस्य बहिनिष्काशनं करोति शल्योद्धरणानन्तरं प्रायः शीघ्र मृत्युस भवात् 'सल्लुद्धरणं करेत्ता, आलोइयपडिक्कंते, समाधिपत्ते आणुपुबीए कालगए' शल्योद्धरणं कृत्वा, आलोचितप्रतिक्रान्तः कृतालोचनप्रतिक्रमणः, समाधिप्राप्तः आनुपूर्व्या क्रमशः कालगतः कालधर्म प्राप्तवान् । 'तए णं तस्स वरुणस्स णागणतुयस्स अब भी मैं उन्हीं भगवन्त महावीरके पास समस्त प्राणातिपातका यावज्जीव प्रत्याख्यान करता हैं "एवं जहा खंदओ जाव एयपि णं चरमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरामि त्तिकटु सन्नाहपट्ट मुयई' यहां और अवशिष्ट कथन स्कन्दाचार्य की तरह जानना चाहिये इस शरीरका भी मैं अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ२ परित्याग करता हूँ। इस प्रकार कहकर उन नागपौत्र वरुणने कवचका परित्याग कर दिया 'मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ' कवचका परित्याग करके फिर उन्होंने अपने शरीर से बाणरूप शल्यको बाहर निकाला घाणके निकलते हो प्रायः मृत्यु हो सकती है इसी ख्यालसे 'सल्लुद्धरणं करेत्ता' बाणको निकालकर उन्होंने 'आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुवीए कालगए' अपने पापकर्मोंकी आलोचना की और उनसे फिर वे पीछे हट गये सव्व पाणाइवायं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए' वे थे श्रम मापान भावारी समक्ष समस्त प्राणातियातना वनपर्यन्त प्रत्याभ्यान ४३ छु. 'एब जहा खदओ जाव-एयपि ण चरमेहिं ऊसासनीसासेहि वोसिरामि ति कट्ट सम्राहपटं मयई' ही माहीतुं समरत ४थन २४हायाना ४थन प्रमाणे समj. આ શરીરને પણ હું અંતિમ શ્વાઓંછવાસની સાથે સાથે પરિત્યાગ કરૂં છું, અહીં સુધીનું કથન ગ્રહણ કરવું. આ પ્રમાણે કહીને તે નાગપૌત્ર વણે કવચને પરિત્યાગ કર્યો. 'मुहत्ता खल्लद्धरणं करेइ' वयपरित्याग रीने तेभारे तमना शरीरमाथा બાણરૂપ શલ્યને બહાર કાઢયું. બાણને કાઢતાં જ સામાન્ય રીતે મૃત્યુ થઈ શકે છે, ५६५ माही मे मन्यु न तु, ते मतापता सूत्रा२ ४९ छ- 'सल्लद्धरणं करेत्ता' माने शरीरमाथा १७२ तीन तेभो 'आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए - - . - - - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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