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________________ ७६४ भगवतीमत्र वन्देत भगवन्त तत्रगतम् अत्रगतोऽहमित्यर्थः, "पासउ मे से भगव तत्थगए' पश्यतु मां स भगवान् तत्रगतः 'जाव वंदइ, नमसइ, व दित्ता, नमसित्ता, एवं वयासी-' यावत्-तं भगवन्त वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा एवं वक्ष्यमाणपकारेण अबादीत्-'पुचि पि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पञ्चक्खाए जावजीवाए' पूर्वमपि प्राकालेऽपि मया श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके-समीपे स्थूल: प्राणातिपातः प्रत्याख्यातः यावज्जीवम् जीवनपर्यन्तम्, एवं जाव थूलए परिग्गहे पञ्चक्खाए जावज्जीवाए' तथैव यावत-श्रमणस्य भगवतों महावीरस्य अन्तिके स्थलः परिग्रहः प्रत्याख्यातो मया यावज्जीवम्, 'इयाणि पिणं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्व पाणाइवाय पञ्चक्खामि जावज्जीवाए' इदानीमपि खलु अहं तस्यैव भगवतो तत्थगय इहगए' यहां पर रहा हुआ मैं तत्र गत भगवानकी वंदना करता हूँ 'पासउ मे से भगव तत्थगए वहां पर रहे हुए वे भगवान् मुझे देखें । 'जाव वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' इम प्रकारका पाठ उच्चारण करके यावत् उन भगवानकी उन्होंने वंदना की नमस्कार किया वंदना नमस्कार करके फिर ऐसा कहा पुचि पि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइ. वाए पञ्चक्खाए जावजीवाए' पहिले भी मैंने श्रमण भगवान् महावीरके समीप स्थूल प्राणातिपातका प्रत्याख्यान यावजीव जीवनपर्यंत किया है इसी तरहसे 'जाव थूलए परिग्गहे पञ्चक्खाए' स्थूल परिग्रहका प्रत्याख्यान यावज्जीव किया है 'इयाणि पि णं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्व पाणाइवायं पञ्चक्खामि जावजीवाए' नत्थगय इह गए' माडी २९ो। हुत्या मापानने ! ४३ छु. पासत मे से भगव तत्थगए' त्यांना ते भगवान भने हेरे-मेट में भारी प्रवृत्तिने मता २९ वी भारी अमिताषा छे. जाव वंदइ नमसइ, दित्ता नम सित्ता एवं वयासी' मा प्रभागना पार्नु व्या२५ ४रीने ते नागपौत्र पणे शथा ते અહંત ભગવાનને તથા મહાવીર પ્રભુને વંદણ કરી અને નમસ્કાર કર્યા – વંદણ नभ२४॥२ रीने तेभो २मा प्रमाणे ४ह्यु- पुबि पि मए समणस्स भगवओ अंतिए थूलाए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए' पडेल ५य में श्रभार ભગવાન મહાવીર સ્વામીની સમીપ સ્થૂલ પ્રાણાતિપાતના જીવનપર્યન્તના પ્રત્યાખ્યાન रेता छ, मे प्रभारी जाव लाए परिग्गहे पच्चक्खाए' २थूला परियड पर्यन्तना પાંચે પાપકર્મોને મેં પરિત્યાગ કર્યો છે, આ રીત મેં પાંચ અણુવ્રતને જીવન પર્યન્ત धा२५ ४ा छ- 'इयाणि पि ण अह तस्सेव भगवओ महावीरस्स ऑतिए શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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