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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.९ सू. ४ रथमुसलसंग्रामनिरूपणम् ७११ असुरेन्द्रश्च । एकहस्तिनाऽपि खलु प्रभुः कूणिको राजा जेतुम् । तथैव यावत् दिशोदिशं प्रतिषेधितवान् , तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-रथमुसलः संग्रामः ? गौतम ! रथमुसले खलु संग्रामे वर्तमाने एको रथः, अनश्वः, असारथिः, अनारोहः, समुसलो महान्तं महान्तं जनक्षयं, जनवधम् , जनप्रमर्दम् , जनसंवर्तकल्पम्, रुधिरकर्दमं कुर्वन् सर्वतः समन्तात् परिधावितवान्, तत् खडे हुए थे । (एवं खलु तओ इंदा संगाम संगामेति) इस प्रकार उनतीनों इन्द्रोंने युद्ध किया । (तं जहा देविदे य, मणुइंदे य, असुरिंदेय) वे तीन इन्द्र इस प्रकारसे हैं एक देवेन्द्र देवराज शक्र, दूसरे मनुजेन्द्र कुणिक और तीसरे असुरेन्द्र चमर (एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया जइत्तए तहेव जाव) कूणिक राजामें ऐसी शक्तिथी कि वह केवल एक हाथीसे भी अपने शत्रुओं को चारों दिशाओंमें भगा दिया । (से केण?णं भंते ! एवं घुच्चह, रहमुसले संगामे) हे भदन्त ! उस संग्रामका नाम रथमुसल ऐसा क्यों हुआ । (गोयमा) हे गौतम ! (रहमुसले णं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए, असारहिए अणारोहए, समुसले, महया महया जणक्खयं जवहं जणप्पमई जणसंवट्टकप्पं, रुहिरकद्दमं, करेमाणे सवओ समंता परिधावित्था, से तेणेटेणं जाव रहमुसले संगामे) रथमुसल संग्राम जब होता है तब उसमें घोडारहित, सारथि रहित, योधारहित हुआ एक (एवं खलु तओ इंदा संगाम संगामें ति) 20 शत र छन्तामे साथे भणीन युद्ध यु (तंजहा) तत्र छन्द्री या प्रमाणे समरा- (देविंदेय, मणुइंदेय, असुरिंदेय) (१) देवेन्द्र १२य श६, (२) नरेन्द्र शि मने. (३) असुरेन्द्र यम२. (एगहत्थिणा वि णं पभू कुणिएराया जइत्तए तहेच जाव) डि रामा मेवी શકિત હતી કે તે એકલા હાથીની મદદથી પણ સમસ્ત શત્રુઓને હરાવી શકો હતો.” ત્યાંથી શરૂ કરીને, “તેણે પિતાના સમસ્ત શત્રુઓને ચારે દિશાઓમાં ભગાડી મૂક્યા, मही सुधार्नु समस्त ४थन डाय ४२. (से केण?णं भंते! एवं वुच्चइ, रहमुसले मंगामे? महन्त ! ते सामर्नु नाम '२थभुसतसयाम' शाारणे पच्यु छ ? (गोयमा !) 3 गौतम! ( रहमुसलेणं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए, असारहिए, अणारोहए, समुसले, महया महया जणक्खयं जणप्पमई, जणसंवट्टकप्प, रुहिरकदम, करेमाणे सबओ समता परिधावित्था, से तेणटेणं जाव रहमुसले संगामे) न्यारे २५भुसमसाम थाय छे, त्यारे मां थी हित, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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