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भगवतीसूत्रे पोषधोपवासाः, रुष्टाः, परिकुपिताः, समरघातिताः, अनुपशान्ताः, कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गताः, कुत्र उपपन्नाः ? गौतम ! प्रायो नरक-तिर्यग्योनिकेषु उपपन्नाः ॥ मू० ३ ॥
टीका-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ महासिलाकंटए संगामे ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन कथं तावत् एवमुच्यते-महाशिलाकण्टकः संग्रामः ? तस्य संग्रामस्य महाशिलाकण्टकं नाम कथं कृतम् ? भगवानाह-'गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे' हे गौतम ! महाशिलाकण्टके खलु निस्सीला, जाव निप्पचक्खाणपोसहोववासा रुटा, परिकुविया, समरवहिया, अणुवसंता, कालमासे कालं किच्चा, कहिं गया, कहिं उववना ? हे भदन्त ! निःशील यावत् प्रत्याख्यान, पोषधोपवाससे रहित' रुष्ट-क्रोध से युक्त, परिकुपित अतिशय क्रोधसे भरे हुए एवं अनुपशान्त बने हुए वे युद्धमें मारे गये मनुष्य कहां गये ? कहां पर उत्पन्न हुए ? (गोयमा) हे गौतम ! (ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएसु उववन्ना) प्रायः करके वे सब के सब युद्ध में मारे गये मनुष्य नरक और तियश्चयोनिमें उत्पन्न हुए हैं।
टीकार्थ-'से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ महासिलाकंटए संगामे' हे भदन्त ! उस संग्रोमके महाशिलाकंटक संग्राम' इस प्रकार के नाम करनेमें हेतु क्या है ? इस बातको जब गौतमने प्रभुसे पूछा तब इसके उत्सरमें प्रभुने उनसे इस बातको प्रकट करनेके लिये सूत्रकार कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'महासिलाकंटए णं मणुया निस्सीला, जाव निप्पञ्चक्खाणपोसहोववासा रुटा, परिकुविया, समरवहिया, अणुवसंता, कालमासे कालं किच्चा कहिंगया, कहिं उववन्ना ?) હે ભદત ! તે શીલરહિત, પ્રત્યાખ્યાન રહિત, પિષધોપવાસ રહિત, રોષયુક્ત, અતિશય ક્રોધસંપન્ન અને અનુષશાન્ત બનેલા મનુષ્ય યુદ્ધમાં મરીને કયાં ગયા? કઈ ગતિમાં उत्पन्न थया ? (गोयमा!) 3 गौतम! (ओसन नरगतिरिक्खजोणिएमु उववन्ना) તેઓ બધાં સામાન્યતઃ નરકોનિમાં અને તિર્યંચનિમાં ઉત્પન્ન થયા છે.
- गौतम स्वामी महावीर प्रभुने । प्रम पूछे छे ४- (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-महासिलाकंटए संगामे ?' 3 महन्त ! ते सामने २॥ आरणे 'महाशिमा-४ सयाम' हेवामां आवे छे.
गौतम स्वामीना प्रश्न ४१५ माता मडावी२ प्रभु ४ छ - "गोयमा!! हे गौतम ! 'महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे' न्यारे भाशिuses साम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫