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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ८ सू०३ संज्ञानिरूपणम् ५-मानसंज्ञा ६-मायासज्ञा ७-लोभसंज्ञा ८-लोकसंज्ञा ९-ओघसज्ञा १०, एवं यावत्- वैमानिकानाम् । नैरयिका दविधां वेदनां प्रत्यनुभवन्तः विहरन्ति, तद्यथा- शीतम् १, उष्णम् २, क्षुधाम् ३, पिपासाम् ४, कण्डूम् ५, परतन्त्रताम् ६, ज्वरम् ७, दाहम् ८, भयम् ९, शोकम् १० ॥९० ३॥ टीका-'कइ णं भंते ! सण्णाओ पण्णत्ताओ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कति खलु कियत्प्रकाराः संज्ञाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा! दस सन्नाओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! दश संज्ञाः प्रज्ञप्ताः, ता एवाह-तंजहा-आहारसन्ना १, ग्रहसंज्ञा ४, क्रोधसंज्ञा ५, मानसंज्ञा ६, मायासंज्ञा ७, लोभसंज्ञा ८, लोकसंज्ञा ९, और ओघसंज्ञा १० (एवं जाव वेमाणियाणं) इसी तरह से यावत् वैमानिकोंके जानना चाहिये । (नेरइया दसविहं वेयणं पञ्चणुभवमाणा विहरंति-तं जहा-सीयं उसिणं, सुहं, पिवास, कंडं, परज्झं, जरं, दाहं, भयं, सोगें) हे भदन्त ! नारक जीव क्या इन दश प्रकार की वेदनाओंका अनुभव करते हैं ? जैसे शीतवेदना १, उष्णवेदना २, क्षुधावेदना ३, तृषावेदना ४, कंडू - खाजवेदना ५, परतंत्रतावेदना ६, ज्वरवेदना ७, दाहवेदना ८, भयवेदना ९, और शोकवेदना १० । टीकार्थ- जोव संज्ञी भी होते हैं । इस कारण मूत्रकार ने यहां संज्ञा संबंधी वक्तव्यता का कथन किया है- इसमें गौतम स्वामीने प्रभसे ऐसा पूछा है- 'कइणं भंते ! सण्णाओ पणत्ताओ' हे भदन्त ! संज्ञाएँ कितने प्रकार की होती हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' (6) भानसशा, (७) भायास ।, (८) लसा , (८) सोस। मन (१०) माघसना. ( एवं जाव वेमाणियाणं) मे शते यावत वैमानित ५-त समन्यु (नेरइया दसविहं वेयणं पचणुभवमाणा विहरंति-तंजहा- सीयं, उसिण, खुह, पिवासं, कंडु, परज्झं, जरं, दाह, भयं, सोगं) ना२४ ७ मा ६५ प्रानी वहनान। अनुमय ४२ छ- (१) तवेना, (२) वेदना, (3) क्षुधावना, (४) तपावना, (५) वहना (भूली), (६) ५२ततावना, (७) श्वेहना, (८) वहना, (6) सयवेहना मने (१०) शावेहना. ટીકાથ– જેવો સંસી પણ હોય છે. તે કારણે સૂત્રકારે અહીં સંજ્ઞા સંબંધી વકતવ્યતાનું કથન કર્યું છે– સંજ્ઞાને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને આ प्रमाणे प्रश्न पूछे छ- 'कइ णं भंते ! सनाओ पण्णत्ताओ?' महन्त ! संज्ञाये। २नी डाय छ ? तन। उत्तर मापता महावीर प्रभु के - 'गोयमा" B શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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