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प्रमेयचन्द्रिका टीका .. ७ उ.८ सू. १ छद्मस्थमनुष्यादिनिरूपणम् प्रतिपादयितुमाह-' से णूणं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेत्र जीवे ?" गोतमः पृच्छति - हे भदन्त ! अथ नूनं निश्चितं किं हस्तिन व विशालकायस्य कुन्थो त्रीन्द्रियक्षुद्रजीवविशेषस्य अत्यन्तलघुकायस्य च सम एवं समान एव जीवः = आत्मा वर्तते । भगवानाह - 'हंता, गोयमा ! हस्थिस्स य कुंथुस्य एवं जहा 'रायप्प सेण इज्जे' जाव-खुड्डियं वा, महालियं वा' हे गौतम! हन्त, सत्यम् इस्तिनश्च महाविशालकायस्यापि अथ च कुन्धोथ त्रीन्द्रियक्षुद्रजन्तुविशेषस्य अत्यन्त लघुकायस्यापि एवं जीवात्मा कायममाणानुसारं विकाशशालित्वेऽपि समान एव वर्तते केवलं कायमात्रे विभेद इत्यासूत्रकार जीवात्माके काय प्रमाणानुसार संकोच विकास स्वभावका प्रतिपादन करनेके निमित्त कहते हैं - इसमें गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि-' से पूर्ण भंते! हत्थिस्स य कुथुस्स य समे चैव जीवे' हे भदन्त ! हाथीका जीब और कुंथुका जीव क्या बराबर है? पूछनेका तात्पर्य ऐसा है कि हाथी का शरीर विशाल अवगाहनावाला होता है और कुन्थुका शरीर बहुत ही कम अवगाहनावाला होता है - यह कुन्थु ते इन्द्रिय जीव है । सो बडे शरीर में बडा रहता होगा और छोटे शरीर में छोटा जीव रहता होगा. इसी अभिप्राय से गौतमने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है कि क्या दोनोंका जीव वराबर है- या छोटा बडा है ? उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि हंता, गोयमा ! हस्थिस्स य कुन्थुरस य एवं जहा रायप्प सेणइज्जे, जाव खुड्डियं वा महालिय वा' हां, गौतम ! विशाल काय हाथी का और अत्यन्त क्षुद्रकाय तेइन्द्रिय कुन्थुका जीव बराबर है। जीव असंख्यात प्रदेशवाला सिद्धान्तमें कहा गया है । अतः जीव चाहे हाथी के शरीर में रहे चाहे कुन्थुके शरीर हस्य कुंथुस्य समेचेव जीवा ? ' हे लहन्त । शु हाथीने व मने કીડીના જીવ સરખા હાય છે ? પ્રશ્નકારના પ્રશ્નનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે- હાથીનું શરીર વિશાળ અવગાહનાવાળું હાય છે અને કીડીનું શરીર ઘણી જ ઓછી અવગાહનાવાળુ હાય છે. કીડી તેઇન્દ્રિય જીવ છે. શુ... મેટા શરીરમાં મેટા છત્ર હોય છે અને નાના શરીરમાં નાના જીવ હાય છે? કે બન્નેના શરીરમાં સમાન જીવ રહેલા હોય છે ?
उत्तर - हंता, गोयमा ! इत्थिस्सय कुथुस्स य एवं जहा रायप्यसेइज्जे जात्र खुड्डियां वा महालिय वा डा गौतम! विशाणमय हाथीनेो मने अत्यन्त ક્ષુદ્રકાય તેઇન્દ્રિય કીડીનેા જીવ સરખાજ હાય છે. જીવને અસંખ્યાત પ્રદેશાવાળા કહ્યો છે. ભલે જીવ હાથીના શરીરમાં રહે કે કીડીના શરીરમાં રહે, પણુ અન્ને જગ્યાએ તે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ