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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.६उ.७.१ शालिप्रभृतिजीवविशेषयोनिस्वरूपनिरूपणम् ४३ वंशादिरचिते धान्याधारपाने आगुप्तानां सुरक्षितानाम्. मश्चागुप्तानां मञ्चोपरि मुरक्षितानां, मालागुप्तानां माले गृहोपरि रचितलघुशालाविशेषे आगुप्तानाम् सुनिहितानाम्, अबलिप्तानां-द्वारभागे पिधानेन सह गोमयादिना अवलिप्तानां लिप्तानां परितो गोमयादिना कृतलेपानाम्, पिहितानां कुम्भादौ शरावादि पिधानेनाऽऽच्छादितानाम्, 'मुद्दियाणं,लंछियाणं' मुद्रितानाम्, मृत्तिकादिमुद्राङ्कितानाम् , लाञ्छितानां रेखादिना कृतचिह्नानाम् धान्यानामिति पूर्वेणान्वयः 'केवइयं कालं जोणी संचिट्ठइ ?' कियन्तं कालं कियत्कालावधि योनिः, अङ्करोत्पादनशक्तिः संतिष्ठते ? भगवानाह-गोयमा ! जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं, उक्कोसेणं आधारभूत पात्र में रखे हुए हों, 'मंचाउत्ताणं मंचके ऊपर रखे हों, 'माला उत्ताणं' माल-घरके ऊपर बनाये हुए छोटे कोठेमें रखें ही 'उल्लित्ताणं' 'चाहे ऐसे पात्र में रखें हों कि जिसका मुख ढक्कनसे ढककर गोमय गोबर आदिसे अच्छी तरहसे बन्द कर दिया गया हो 'लित्ताणं' चाहे ऐसे विटोरामें ये रखे हों कि जो चारों ओरसे गोमय(गोबर) आदिसे लीपा पोता हुआ हो 'पिहियाणं' ऐसे वर्तनमे कि जिसका मुख मिट्टीके दीपकसे ढका हुआ हो, मुदियाणं' चाहे मीहीसे छबे हुए स्थान में रखे हो, 'लेछियाणं' चाहे ऐसी जगहमें रखें हों कि जहां पर मृतिका आदिसे सिर्फ रेखामात्र ही की गई हो, एसे इन धान्योंकी 'केवड्य काल जोणि संचिट्ठह' कितने कालतक योनि अङ्करोत्पादन शक्ति रहती है ? इस प्रश्नके उत्तर में प्रभु उनसे कहते राज्यु डाय, 'पल्लाउत्ताणं' वास माहिमाथी मनावेदा ५८सा (2 ) मा राभ्यु डेय, 'मंचाउत्ताणं' भय ५२ २७यु डाय, 'मालाउत्ताणं' भा॥ ५२घरने से भाणे शमेला २मा राज्यु डाय, 'उलिताणं' 2 पात्रमा तेने शभ्यु હોય તે પાત્રની ઉપર ઢાંકણું ઢાંકીને તેને છાણ-માટી આદિથી લીંપીને બરાબર બંધ अपामा माव्युडाय, 'लित्ताणं' अथवा गा, गोजी आदि पात्रमा तेने राज्यु હોય તે પાત્રને છાણ આદિથી ચારે તરફ લીંપવા ઝુંપવામાં આવેલું હોય, 'पिहियाणं' भाटीना शा२। आहिथी ढांसा पत्रमा तेने रामेसु डाय, 'मुहियाणं तेने मारीथी का पता स्थानमा युडाय, 'लेछियाणं' मोवा-यामा રાખ્યું હોય કે જ્યાં માટી આદિની રેખા કરીને નિશાનીજ કરેલી હોય, એવાં ઉપર્યુકત धान्यानी 'केवइयं कालं जोणि संचिट्टइ ?? योनि- शत्याहन शति- 321 to પર્યન્તની હોય છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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