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म. टीका श. ७ उ.६ मू. ३ भाविभरतक्षेत्रीयमनुष्योवस्थानिरूपणम् ५५९ प्रधानाः, अकार्यनित्योद्यताः गुरुनियोगविनयरहिताश्च, विकलरूपाः, प्ररूढनखकेशश्मश्रुरोंमाणः, कालाः, खरपरुषध्यामवर्णाः, स्फुटितशिरसः, कपिलपलित केशाः, बहुस्नायुसंपिनद्धदुर्दर्शनीयरूपाः, संकुचितवलितरङ्गपरिवेष्टिताङ्गोपाङ्गाः, जरापरिणता इव स्थविरनराः, प्रविरलपरिशटितदन्तश्रेणयः, दुर्भरघटमुखाः, विक्रमनयनाः, वक्रनासाः, वक्रवालिविकृत-भीषणमुखाः, कच्छुकशराभिभूताः, खर-तीक्ष्ण-नखकण्ड्यनविक्षततनवः, दद्रु किटिभसिध्मवध करने में, बंध करनेमें, एवं शत्रुता करने में नित्य तत्पर रहेंगे । मर्यादाका अतिक्रमण करना उनका प्रधान कार्य रहेगा । (अकजनिच्चुजया गुरुनियोयविणयरहिया य विकलरूवा, परूढ-नह-केस मंसु-रोमा, काला, खरफरुसझामवन्ना, फुट्टसिरा, कविलपालियकेसा, बहुण्हारुसंपिणद्धदुइंसणिज्जरूवा, संकुडियवलीतरंगपरिवेढिय. गमंगा) अकार्य करने में वे नित्य उद्यत रहेंगे। गुरुजनोंकी अवश्य करने योग विनय से वे रहित रहेंगे। उनकारूप बेडौल होगा । इनके नख, केश, दाढीके बाल और मूछों के बाल बढे रहेंगे। ये अत्यन्तकाले, कठोरस्पर्शवाले, धूमके जैसे वर्णवाले, विखरे हुए बालों काले, कपिल पलित केशोंवाले, अनेक स्नायुयों से संबद्ध होनेके दुर्दर्शनीयरूपवाले, आडे टेढे अंगोवाले-बलितरंगोसे परिवेष्टित अंगोपाङ्गोवाले होंगे (जरा परिणयव्व, थेरगनरा, पविरलपरिसडिय दंतसेढी, उन्भडघडयमुहा, विसमणयणा, वंकनासा, बंकवली विगय भेसणमुहा, कच्छू कसराभिभूया 'खर-तिक्खनख कंडूइय विक्खय तमान भुभ्य ४ाय मर्यादा मार्नु Seaधन ४२पार्नु ७२.(अकज्जनिच्चुज्जयागुरु नियोयविणयरहिया य, विकलरूवा, परुढ - नह-केस • मंसु - रोमा-काला, खरफरुसझामवन्ना, फुवसिरा, कविल - पालियकेसा, बहुण्हारुसंपिणद्ध • दुईसणिज्जरूवा, संकुडियवली तरंग परिवहियंगमंगा) तेसा नहीं ४२॥ योग्य आय ४२वाने सहा તત્પર રહેશે, ગુરુજનો ચિત વિનયથી એટલે કે વડિલે પ્રત્યે કરવા યોગ્ય વિનયથી તેઓ રહિત
श. मन म, श, भने हाढी-भूछना वाण ५॥ २९श. तेम्मा सत्य-त , કઠોર સ્પર્શવાળા, ધૂમસમાન વર્ણવાળા, વેરવિખેર કેશવાળા, દુર્બળ (પીળાશ પડતાં) કેશવાળા, અનેક સ્નાયુઓનો સંબદ્ધ હેવાને લીધે દુર્દશનીય (બેડોળ) રૂપવાળા, વક मनोवा, भने ४२यलीथी युत मगोपांगोवाणा श. (जरा परिणयन्च, थेरगनरा पविरल-परिसडिय-दंतसेढी, उब्भडधडयमुहा विसमणयणा. चकनासा, बंकवली विगयभेसणमुहा, कच्छूकसराभिभूया. खरतिक्खनखक डूइय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫