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________________ - ममेयचन्द्रिका टीका २.७ उ.४ मू.१ संसारिजीवस्वरूपनिरूपणम् १९१ कायिकाः, सकायिकाः षट्प्रकारकाः यथा जीवाभिगमसूत्रे मतिपादिताः, तदवधिमाह-यावत्-सम्यकत्वक्रियां वा, मिथ्यात्वक्रियां वा इत्यन्तम् , तथा अमपि बोद्धव्याः। तथा च जीवाभिगमसूत्रे एवमुक्तम्-'पुढविकाइया जाव तसकाइया, से किं तं पुढत्रिकाइया ? पुढविकाइया दुविहा पणत्ता, तं जहा-सहुमपुडविकाइया, बायरपुढविकाइया' इत्यादि । पृथिवीकायिकाः यावत्-त्रसकायिकाः, अथ के ते पृथिवीकायिकाः ? पृथिवीकायिकाः द्विविधाः मज्ञप्ताः तद्यथा-मूक्ष्मपृथिवीकायिकाः, बादरपृथिवीकायिकाः० इत्यादि। पृथिवीकायिक एवं अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, प्रसकायिक ये ६ प्रकारके जीव जिस प्रकारसे जीवाभिगम सूत्र में प्रतिपादित, सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रियातक हुए हैं उसी प्रकारसे यहां पर भी जानना चाहिये । जीवाभिगमसूत्रमें ऐसा कहा है 'पुढविकाइया जाव तसकाइया' संसारीजीव पृथिवी कायिकसे लेकर उसकायतक हैं। 'से किं तं पुढविकाइया' हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव कितने प्रकारके हैं ? 'पुढावकाइया दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! पृथिवीकायिक दो प्रकारके हैं 'तंजहा' जैसे 'सुहममुढ. विकाइया, बादरपुढविकाइया इत्यादि मूक्ष्मपृथिवीकायिक और बादर पृथिवीकायिक इत्यादि इसके बाद ऐसा वहां कहा गया है कि 'एगे जीवे एगणं समएणं एगां किरियं पकरेइ' एकजीव एक समयमें एक क्रिया करता है 'तंजहा समत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा' या तो ત્રસકાયિક, એ છ પ્રકારના જીવનું જીવાભિગમ સૂત્રમાં જે પ્રકારે પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે, તે સમસ્ત કથન સમ્યકત્વ ક્રિયા અને મિથ્યાત્વ ક્રિયા સુધીના વિષયમાં અહીં अडाए ४२. पालिराम सूत्रम मा प्रभाव छ - 'पढवीकाइया जाव तमकाया। संसारी अपना पृथ्वीयथा बधन सय ५4-तना छ । छे. प्रश्र - से कि तं प्रदबिकाइया?" डे सह! पृथ्वी५ ७ मा छ. उत्तर - पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता' गौतम! 2414४ । मे मारना छे. 'तजहा' ते प्रा। नीय प्रमाणे- 'मुहमपुढविकाइया, बादरपदविकाइया. त्या-' सूक्ष्म पृथ्वा४ि मने मा२ (२५) वी4ि त्याहि यन सो ४२पामा माव्यु छे. त्या२ मा त्यो मे थुछ है - एगे जीवे एगणं समरणं एगां किरिया पकरेइ भे ७१ ४ समयमा या ४२ - 'तंजहा' -- समत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा' it ते सभ्यत्व &ि41 ४३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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