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________________ ४८० भगवतीसत्रे भगवानाह-'गोयमा ! णो इणहे समढे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नैरयिकाणां वेदनानिर्जरासमयो नो एकः किन्तु विभिन्न एव । गौतमः पृच्छति-से केणटेणं एवं वुच्चइ-नेरइयाणं जे वेयणासमए न से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए न से वेयणा समए ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन कथं तावत् एवमुच्यते-नैरयिकाणां यो वेदनासमयः न स निर्जरासमयः, यो निर्जरासमयः न स वेदनासमयः ? भगवानाह-गोयमा ! नेरइयाणं ज समयं वेदेति णो तं समयं णिज्जरेति, ज समय णिजाति णो तं समयं वेदेति' हे गौतम ! नैरयिकाः खलु यं समयं यस्मिन् समये वेदयन्ति नो तं समयं तस्मिन् समये निर्जरयन्ति, अथ च य समयं यस्मिन् समये निर्जर. यन्ति नो तं समयं तस्मिन् समये वेदयन्ति 'अण्णम्मि समए वेदें ति, कि हे गौतम ! ‘णो इणढे समढे' यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् नारक जीवोंकी वेदनाका और निर्जराका समय एक नहीं है, किन्तु भिन्न २ ही है। इस बात पर गौतम प्रभुसे पूछते हैं कि 'से केणटेणं एवं वुच्चइ, नेर इयाणं जे वेयणासमए, न से निजरासमए, जे निजरा समए, न से वेयणासमए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नारकजीवों को जो वेदनाका समय है वह निर्जराका समय नहीं है और जो निज्जरा का समय है वह वेदनाका समय नहीं है ? इसके उत्तरमें प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम! 'नेरइया णं जं समयं वेदेति तं समयं निजरेति, जं समयं णिजाति, णो तं समयं वेदेति' नारक जीव जिस समयमें कर्म का वेदन करते हैं उसी समयमें वे उनकी निर्जरा नहीं करते हैं और जिस समयमें वे तना उत्तर मापता मडावी२ प्रनु छ ?- 'णो इणते समटे गौतम ! એવું બની શકતું નથી. એટલે કે નારક છવાની વેદનાને અને નિર્જરાનો સમય એક જ નથી પણ ભિન્ન ભિન્ન (જુદે જુદો) છે. गौतम स्वामीना प्रश्न- से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ, नेरइयाण जे वेयणासमए, न से निजरासमए, जे निजरासमए, न से वेयणासमए ?' હે ભદન્ત! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે નારક જીવોને વેદનાનો જે સમય છે, એ જ નિજેરાને સમય નથી. અને નિર્જરને જે સમય છે, એજ વેદનાને સમય નથી? ते त्त२ मापता महावीर प्रभु ४ छ- 'गोयमा!' हे गौतम ! 'नेरइयाणं ज समय वेदें नि, नो तं समय निजरेंति, जं समयं णिज्जाति, णो त समयं वेदेति' ना२४ २ समये मनु वेहन रे छ, मेरी सभये मना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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