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________________ प्रमेवचन्द्रिका टीका श.७ उ.३ सू.५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ४७९ अण्णम्मि समए निज्जरेंति' अन्यस्मिन् समये वेदयन्ति, अन्यस्मिन् समये निर्जरयन्ति, 'अण्णे से वेयणासमए, अण्णे से निज्जरासमए' अन्यः स वेदनासमयः, अन्यः स निर्जरासमयः, ‘से तेणटेणं जाव-न से वेयणासमए', हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावत्-एवमुच्यते यो वेदना समयः न स निर्जरा समयः, यो निर्जरासमयः न स वेदनासमयः, इत्याशयः। अथ नैरयिकादिजीवमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'नेरइयाणं भंते ! जे वेयणासमए से निजरासमए, जे निज्जरासमए से वेयणासमए ?' हे भदन्त ! नैरयिकाणां यो वेदनासमयः स निर्जरासमयः, अथ च यो निर्जरासमयः स वेदनासमयः ? निज्जति' इस तरह अन्य समय में वे वेदन करते हैं और अन्य समयमें वे निर्जरा करते हैं 'अण्णे से वेयणासमए, अण्णे से निजरा समए' अत वेदना का वह समय जुदा है और निर्जराका वह समय जुदा है 'से तेणटेणं जाव न से वेयणासमए' इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि जो वेदनाका समय है वह निराका समय नहीं है और जो निर्जराका समय है वह वेदना का समय नहीं है। अब नैरयिक आदि जीव विशेषको आश्रित करके गौतम ऐसा पूछते हैं कि- 'नेरइया णं भंते ! जे वेयणासमए से निजरासमए, जे निजरासमए से वेयणासमए' हे भदन्त ! नारक जीवोंका जो वेदनाका समय है क्या वही निर्जराका समय है और जो निर्जराका समय है क्या वही वेदना का समय है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं 'अण्णम्मि समए वेदेति, अण्णम्मि समए निजरेति' २॥ शत मे४ समये જ્યારે તેઓ તેનું વેદન કરે છે, તેના કરતાં અન્ય સમયે તેઓ તેની નિર્જરા કરે છે. 'अण्णे से वेयणा समए, अण्णे से निज्जरासमए' हनान समय डाय छ તે પણ જુદો જ હોય છે, અને નિર્જરાને જે સમય હોય છે તે પણ જુદે જ હોય છે. से तेणटेण जाव न से वेयणासमए' 3 गौतम ! ते २0 में से युं छे જે વેદનાને સમય હોય છે, તે નિર્જરાનો સમય હતો નથી અને જે નિર્જરા સમય હિય છે તે વેદનાને સમય હોતો નથી. હવે નારક આદિ જીવવિશેષને અનુલક્ષીને गौतम स्वामी या प्रमाणे प्रश्न पूछे छे- 'नेरइयाण भंते ! जे वेयणा समए से निज्जरासमए, जे निजरासमए से वेयणासमए ?” महन्त ! ना२४ वान। વેદનાને જે સમય છે, એ જ શું તેમની નિર્જરા સમય છે, અને જે નિર્જરાને સમય છે, એ જ શું વેદનાને સમય છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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