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________________ ४६२ भगवतीसूत्रे यो वेदनासमयः स निर्जरासमयः, यो निर्जरासमयः स वेदनासमयः ? नायमर्थः समर्थः, तत् केनार्थेन एव मुच्यते-यो वेदनासमयः नो स निर्जरासमयः, यो निर्जरासमयः नो स वेदनासमयः ? गौतम! यं समयं वेदयन्ति, नो तं समयं निर्जरयन्ति, यं समयं निरयन्ति नो तं समयं वेदयन्ति, अन्यस्मिन् भी जानना चाहिये । (से गुणं भंते ! जे वेयणासमए से णिज्जरासमए, जे णिजरासमए से वेयणासमए) हे भदन्त ! क्या यह निश्चित बात है कि जो वेदनाका समय है वही निर्जराका समय है और जो निर्जराका समय है वही वेदनाका समय है ? (णो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । (से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ, जे वेयणासमए न से णिज्जरासमए, जेणिजरासमए न से वेयणासमए) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारणसे कहते हैं कि जो वेदनाका समय है वह निर्जराका समय नहीं है और जो निर्जरा होनेका समय है वह वेदनाका समय नहीं है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जं समयं वेदेति, णो तं समय णिजाति जं समयं णिज्जरेंति, णो तं समयं वेदेति, अन्नम्मि समए वेदेति अन्नम्मि समए णिजरेंति) जीव जिस समयमें कर्मका वेदन करता है उस समयमें वह उसकी निर्जरा नहीं करता है, और जिस समयमें वह उसकी निर्जरा करता है उस समयमें वह उसका वेदन नहीं करता है । भिन्न समयमें वेदन करता है और भिन्न समयमें निर्जरा से गृणं भंते ! जे वेयणासमए से निजरासमए, जे णिज्जरासमए से वेयणा समए ?) हे महत! शुभे पात भरी छे 32 नाना समय हाय छ એ જ નિર્જરાનો સમય હોય છે, અને જે નિર્જરાને સમય હોય છે, એ જ વેદનાને समय डीय छ ? (गोयमा! या इणढे समटे) हे गौतम ! मेQ सवा शतु नथी. 'से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ, जे वेयणासमए न से णिजरासमए, जे णिजरासमए न से वेयणासमए ?' ले मात ! मे मा५ ॥ २णे हे। छ। જે વેદનાને સમય છે તે નિર્જરાનો સમય નથી અને જે નિર્જરા થવાનો સમય છે त वहना समय नथी ? ( गोयमा !) गौतम! (जं समयं वेदेति णो तं समयं णिज्जरेंति, जं समयं णिज्जरेंति, णो तं समयं वेदेति, अन्नम्मिसमए वेदंति, अन्नम्मिसमए णिज्जाति) ७५ समये भर्नु वेहन ४२ छ તે સમયે કમની નિર્જરા કરતું નથી, અને જે સમયે કર્મની નિર્જરા કરે છે તે સમયે તે તેનું વેદન કરતું નથી. તે ભિન્ન સમયે વેદન કરે છે અને ભિન્ન સમયે નિર્જરા કરે છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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