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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.७ उ.३ म.५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ४६१ तद् निर्जरयिष्यन्ति, यत् निर्जरयिष्यन्ति तद् वेदयिष्यन्ति ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तत् केनार्थेन यावत्-नो तद् वेदयिष्यन्ति ? गौतम ! कर्म वेदयिष्यन्ति, नो कर्म निर्जरयिष्यन्ति, तत् तेनार्थेन यावत्-नो तत् निर्जरयिष्यन्ति, एवं नैरयिका अपि, यावत्-वैमानिकाः । अथ नूनं भदन्त ! जाव वेमाणिया) इसी प्रकार से नारकजीवों के विषय में भी जानना चाहिये। और इसी प्रकार से यावत वैमानिक देवों के विषय में भी जानना चाहिये।) (से गृणं भंते ! जं वेदिस्संति, तं णिजरिस्संति, जं णिजरिस्संति तं वेदिस्संति) हे भदन्त ! क्या यह निश्चित बात है कि जीव जिस कर्म का वेदन करेगा उसी कर्म की वह निर्जरा करेगा और जिस कर्म की वह निर्जरा करेगा उसी कर्म का वह वेदन करेगा? (गोयमा) हे गौतम ! ( णो इणढे समढे) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (से केणटेणं जाव णो तं वेदिस्संति) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जीव यावत् उस कम का वेदन नहीं करेगा? ( गोयमा! कम्मं वेदिस्संति, णो कम्मं णिजरिस्संति-से तेणढणं जाव णो तं णिजरिस्संति) हे गौतम ! जीव कर्मका वेदन करेगा और नो कर्मकी वह निर्जरा करेगा इस कारण हे गौतम ! मैने ऐसा कहा है कि जीव जिसका वेदन करेगा वह उसकी निर्जरा नहीं करेगा। (नेरइया वि जाव वेमाणिया) इसी तरहसे नारकसे लेकर यावत् वैमानिक देवोंके विषयमें ___ (से पूर्ण भंते ! जं वेदिस्संति, तं णिज्ज रिस्संति, जं णिजरिस्संति, तं वेदिति ) सन्त ! शु श पात भरी छ । ७३ भर्नु वहन ४२२ मे २८ કર્મની તે નિર્જરા કરશે, અને જે કર્મની તે નિર્જરા કરશે એ જ કર્મનું તે વેદન ४२थे ? (गोयमा) गौतम ! (णो इणट्रे समटे) वात सभी शती नथी. (से केणद्रणं जाव णो तं वेदिस्संति ? डे महन्त ! मे. मा५ ॥ ये हो છે કે જીવ જે કમનું વેદન કરશે એ જ કર્મની નિર્જરા નહીં કરે, અને तेरे भनी नि२४२श मे मर्नु तेना ६.२॥ वेहन. ४२२ नही ? (गोयमा !) हे गौतम ! (कम्मं वेदिस्संति, णोकम्मं णिजरिस्संति से तेणद्वेणं जाव जो तं णिजरिस्संति ) ७५ भनु वेहन ४२शे मने नभनी तेना તેના દ્વારા તિરા કરાશે. હે ગૌતમ! તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે જીવ દ્વારા જે કર્મનું વદન કરાશે તે કર્મની તેના દ્વારા નિર્જરા કરાશે નહીં, અને જે કમની નિર્જર 20 ते मर्नु तेना.२॥ वेहन थशे नही (नेरइया वि जाव वेमाणिया) मे प्रमाणे નારકથી લઈને વૈમાનિક પંક્તના જીવના વિષયમાં સમજવું.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫