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________________ प्रमेयचन्द्रिका श.७ उ.३ ५.४ कृष्णलेश्यादेकर्मणामल्पमहत्वनिरूपणम् ४४९ गौतमः पृच्छति-'सिय भंते ! नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए' हे भदन्त ! स्यात् कदाचित् किं नीललेश्यो नैरयिकः अल्पकर्मतरः, कदाचित् किं कायोतलेश्यो नरयिकः महाकर्मतरो भवेत् ? भगवानाह-हंता सिय' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् स्यात् कदाचित् नील. लेश्यो नैरयिकः अल्पकर्म तरः कापोतलेश्यो नैरयिकश्च कदाचित् महाकर्मतरो भवेत् । गौतमस्तत्र पूर्ववदेव कारणं पृच्छति-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइनीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन कथं तावत्-एवमुच्यते यत् स्यात् नीललेश्यो नैरयिकः अल्पकर्मतरः स्यात-कापोतलेश्यो नैरयिकः महाकर्मतरः ? भगवान् पूर्ववदेव __ अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'सिय भंते ! नोललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए 'महा कम्मतराए' हे भदन्त ! ऐसा हो सकता है क्या कि नीललेश्यावाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्म वाला हो और कापोतलेश्यावाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला हो ? इसके उत्तरमें प्रभु उनसे कहते हैं कि 'हंता, सिय' हा गौतम! नीललेश्यावाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्म वाला हो सकता है और कापोतलेश्यावाला नारक महाकर्मवाला हो सकता है। गौतमस्वामी प्रभुसे इस विषयमें कारण पूछते हैं कि 'से केणगुणं भंते ! एवं बुच्चइ नीललेस्से अप्पकम्मतराए काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारणसे कहेते हैं कि नीललेश्यावाला नारक अल्पकर्मा होता है और कापोतलेश्यावाला नैरयिक महोकर्मा होता है ? इसके उत्तरमें प्रभु वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने यो प्रश्न पूछे छे - 'सिय भंते नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरहए महासम्मतराए? 3 HER! શ' એવું સંભવી શકે છે કે નીલ લેયાવાળે નારક જીવ અયકમ વાળા હોય અને કાત લેશ્યાવાળો નારક જીવ મહાકવાળે હેાય? उत्तर- 'हता सिय , गौतम नीतश्यावा ना२४ यारे ५કર્મવાળો હોઈ શકે છે અને કાપત લેશ્યાવાળો નારક છવ કયારેક મહાકર્મવાળે હેઈ श: छ. गौतम स्वाभान - से केण ट्रेण भंते एवं वुच्चड - नीललेस्से अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए?' महन्त ! मे मा५ શા કારણે કહે છે કે નીલક્ષાવાળે નારક કયારેક અ૫કમ હેઈ શકે છે, અને કાપાત લેશ્યાવાળે નાર. કયારેક મહાક હોઈ શકે છે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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