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________________ ममेयचन्द्रिकाटीका श.७ उ.३.४ कृष्णलेश्यादेःकर्मणामल्पमहत्वनिरूपणम् ४४३ लेश्यो नैरयिकः अल्पकर्मतरः, कपोतलेक्यो नैरयिकः महाकर्मतरः ? हन्त, स्यात् । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते नीललेश्यो नैरयिकः अल्पकमैतरः कापोतलेश्यो नैरयिकः महाकमंतरः ? गौतम ! स्थिति प्रतीत्य, तत् तेनार्थेन गौतम ! यावत्-महाकर्मतरः। एवम् असुरकुमारोऽपि, नवरं तेजोलेश्या अभ्यधिका । एवं यावत-वैमानिकाः । यस्य यावत्यो लेश्याः, तस्य तावत्यो लेश्यावाला जीव महाकर्मवाला हो सकता है । (सिय भंते ! नील लेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए) हे भदन्त । क्या ऐसा हो सकता है कि नीललेश्यावाला नारकजीव अल्प कर्मवाला हो और कापोत लेश्यावाला नारकजीव महाकर्मवाला हो ? (हंता, सिया) हां, गौतम ! ऐसा हो सकता है। (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ, नीललेस्से अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महा कम्मतराए) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नीललेश्यावाला जीव अल्पकवाला होता है और कापोतलेश्यावाला जीव महाकर्मवाला होता है । (गोयमा) हे गौतम ! (ठिइं पडुच्च-से तेणटेण गोयमा ! जाव महाकम्मतराए) स्थिति की अपेक्षा लेकर ऐसा हो सकता है । इसीलिये मैंने ऐसा कहा है कि नीललेश्यावाला नारकजीव अल्पकर्मवाला होता है और कापोतलेश्यावाला नारकजीव महाकर्मवाला होता है । (एवं असुरकुमारे वि, नवरं तेउलेस्सा अभहिया, एवं जाव वेमाणिया, जस्स जत्तिया लेस्साओ-तस्स तत्तिया (सिय भंते ! नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए) 3 H-1! शुभे समवश छ नीतश्यावाणो ना२४ ७५ અ૫ કર્મવાળ હોય છે અને કાપિત લેશ્યાવાળે નારક છત્ર મહાકર્મવાળા હોય છે? (हंता, सिया) &, गौतम ! मेj समवी. श छ. ( से केद्रेणं भंते ! एवं बुच्चइ, नीललेस्से अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए !) હે ભદન્ત! એવું આપ શા કારણે કહે છે કે નીલેશ્યાવાળે નારક છત્ર અલ્પકમ વાળે हाय छ भने पोत दोश्यावाणो ना२४ ७१ महाभ वा डाय छ ? (गोयमा!) 3 गौतम! ठिडं पडुच्च-से तेणटेणं गोयमा जाव महाकम्मतराए) स्थितिनी અપેક્ષાએ એવું હોઈ શકે છે, તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે નીલલેશ્યાવાળે નારક જીવ અલ્પકર્મવાળે સંભવી શકે છે અને કાતિલેશ્યાવાળે નારક જીવ મહાકર્મવાળો सलवी श. (एवं असुरकुमारे वि, णवरं तेउलेस्सा अब्भहिया, एवं जाव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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