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________________ २३४ गाथा - 'जीवानां च सुखं दुःखं, जीवो जीवति, तथैव भविकाथ, एकान्तदु:ख वेदनाऽऽत्मना आदाय केवली ॥ १ ॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त । इति ॥ सू० ५ ॥ टीका- 'आत्मना आदाय' इत्यस्याधुनैवोक्तत्वेन आदानसाधर्म्यात् केवलिन आदानविषये विशेषवक्तव्यतामाह - 'केवली णं भंते' इत्यादि । ' केवली नं भंते ! आयाणेहिं जाणइ, पासइ ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! केचली haarat खलु आदानैः आदीयते गृहयते पदार्थ : एभिः इति आदानानि इन्द्रियाणि तैः इन्द्रियद्वारा इत्यर्थः जानाति पश्यति ? भगवानाह - 'गोयमा भगवती सूत्रे गाथार्थ - जीवों के सुख दुःख का, जीव चैतन्य रूप है या चैतन्य जीवरूप है इस विषय का, जीव के प्राणधारण का, भवसिद्धिक का, एकान्त दुःखवेदन का, आत्म द्वारा पुद्गलों के ग्रहण करने का, तथा केवली के जानने देखने का - इन सब विषयों का इस दशवें १० उद्देशक में विचार किया गया है। ऐसा जो अभी टीकार्थ- 'अत्तमायाए' आत्मद्वारा ग्रहण करके कहा गया है- सो इसी आदान (इन्द्रिय) के साधर्म्य को लेकर केवली के आदान (इन्द्रिय) के विषय में सूत्रकार विशेष वक्तव्यता का कथन करते हैं- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि 'केवली णं भंते !" हे भदन्त ! केवली भगवान् 'आयाणेहिं' इन्द्रियों द्वारा 'जाणइ पास ' जानते और देखते हैं क्या? 'आदीयते गृह्यते पदार्थः एभिः' इति आदानानि' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिनके द्वारा पदार्थ ग्रहण किये ગાથાર્થ — જીવાનાં સુખદુ:ખનું, જીવ ચૈતન્યરૂપ છે કે ચૈતન્ય જીવરૂપ છે તે વિષયનું, જીવના પ્રાણધારણનું, ભવસિદ્ધિકનું, એકાન્ત દુ:ખવેદનાનું, આત્મ દ્વારા પુદ્ગલને ગ્રહણ કરવાનું, તથા કેવલીનું જાણવા દેખવાનું, આ બધા વિષયાનું આ દસમા ઉદ્શકમાં પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. टीअर्थ - 'अत्तमायाए' आत्म द्वारा ग्रहण उरीने मे કહેવામાં આવ્યું છે. તા એ જ આદાન (ઈન્દ્રિયા)ના સાધર્મ્સની આદાન ઇન્દ્રિયા)ના વિષયમાં સૂત્રકાર વિશેષ વકતવ્યતાનું કથન अनुसक्षीने गौतम स्वाभी महावीर अलुने मेवा प्रश्न पूछे छे हे लहन्त ! ठेवसी लगवान 'आयाणेहिं' महाना इन्द्रियो શું જાણે છે અને દેખે છે? 'आदीयते गृह्यते पदार्थ: एभिः इति आदानानि' इद्गीयाणि या व्युत्पत्ति શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ पडेसाना सूत्रभां અપેક્ષાએ કેવલીના કરે છે— આ વિષયને 'केवली णं भंते ! द्वारा जाणइ पासइ ?'
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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