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________________ १७६ भगवतीसगे ___'एवं णीलएणं जाय-सुकिल्ल' एवं तथैव नीलकेन नीलवर्णपुद्गलेन यावत्शुक्लम् शुक्लवर्णपुद्गळः परिणमयितव्यः, यावत्करणात्-नीलवर्णपुद्गलेन लोहितवर्णपुद्गलः, हारिद्रवर्णपुद्गलः, शुक्लवर्णपुद्गलश्च परिणमयितव्यः इतिबोध्यम्, ‘एवं लोहियपोग्गलं जाव-सुकिल्लत्ताए' एवं तथैव लोहितपुद्गलं यावत्-शुक्लतया शुक्लवर्णपुद्गलयता बाह्यान् पुद्गलान् पर्यादाय देवः परिणामयति यावत्करणात्-लोहितपुद्गलं हारिद्रवर्णपुद्गलतया परिणमयति' इति संग्राह्यम् , 'एवं हालिद्दएणं सुकिल्ल' एवं तथैव हारिद्रकेण हारिद्रवर्णदेता है बदल देता है । 'एवं णीलएणे जाव सुक्किल्लं' इसी तरह से वह देव नीलपुद्गलके साथ यावत् शुक्लवर्णवाले पुद्गलका परिणमन करा देता है। यहां यावत्' शब्द से ऐसा पाठ ग्रहण किया गया है। कि नील वर्णवाले पुद्गल के साथ लोहितवर्णवाला पुद्गल, हारिद्रवर्णवाला पुद्गल और शुक्लवर्णवाला पुद्गल परिणमायितव्य है- अर्थात् वह देव नीलवर्णवाले पुद्गल को लोहितवर्णवाले पुद्गल के रूप में, हारिद्रवर्णवाले पुद्गल के रूप में और शुक्लवर्णवाले पुद्गल के रूप में परिणमा देता है । 'एवं लोहिय पोग्गल जाव सुकिल्लत्ताए' इसी तरह से लोहित पुद्गल को यावत् शुक्लवर्णवाले पुद्लग के रूपमें वह देव बाय पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमा देता है। यहां 'यावत्' शब्द से 'लोहित पुद्गलम्लोहितपुद्गल को (हारिद्रपुदलतया) हरिद्रवर्णवाले पुद्गल के रूप में परिणमा देता है' यह पाठ गृहीत हुआ है, 'एनं हालिदएणं सुकिल्ल' इसी तरह से हरिद्रवर्णवाले पुद्गल के साथ शुक्लवर्णवाले पुद्गलको Y९३५ परिणभाव छ-परिवर्तित ४६॥ नाणे छे-मदी नामे छ. 'एणं णीलएणं जाव मुकिल्लं प्रमाणे ते व नीaafना हसन सह पतन व on મુદ્દગલરૂપે પરિણમાવી શકે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે – તે દેવ બાહ્ય પુગલોને ગ્રહણ કરીને નીલવર્ણવાળા પુદગલને લાલવર્ણવાળા પુદગલરૂપે, પીળા वागत तथा सई १ ५०३२ परिभावी हे छे. एवं लोहिय पोग्गलं जाव मुक्किल्लत्ताए' मे प्रमाणे ते ३ ale Yसलन शु प-तना વર્ણવાળા પુદગલરૂપે પરિણાવે છે. એટલે કે તે લાલવર્ણના પુદ્ગલને પીળાવર્ણના Y३५ तथा सविन पुगत३५ परिणभावे छे. 'एवं हालिइएणं सुकिल्लं' એજ પ્રમાણે બાહ્ય પુદ્ગલેને ગ્રહણ કરીને તે દેવ પીળાવર્ણના પુદગલને સફેદવર્ણવાળા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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