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________________ १६० भगवतीसूत्रे 'जीवेणं भंते !' इत्यादि । 'जीवेणं भंते !' णाणावरणिज्ज कम्म बंधमाणे कइ कम्मप्पगडीओ बंधइ ?' गौतमः पृच्छति- हे भदन्त! जीव खलु ज्ञानावरणीयं कर्मबध्नन् कति-कियतीः कर्मप्रकृतोः बध्नाति ? भगवानाह'गोयमा! सत्तविहबंधएवा, अट्टविहबंधएवा, छबिहबंधएवा' हे गौतम! जीवो ज्ञानवरणीयं कर्मबध्नन् आयुषोऽबन्धकाले सप्तविधबन्धकः ज्ञानावरणदर्शनावरणादि भेदेन सप्तमकारककर्मबन्धको भवति, वा शब्दः पक्षान्तरसूचको वर्तते, तदेव पक्षान्तरमाह-अष्टविधबन्धको वा भवति आयुषोबन्धकाले अष्ट प्रकाराणामपि कर्मणां बन्धको भवति, तथा सूक्ष्मसंपराय दशमगुणही होता है- इसलिये अब सूत्रकार कर्मबन्ध की प्ररूपणा करने के लिये 'जीवे गं भंते' इत्यादि सूत्र कहते हैं- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि 'जीवे णं भंते ! णाणावरणिकं कम्मं बंधमाणे कइ. कम्मप्पगडोओ बंधई' हे भदन्त ! जीव जब ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है, उस समय वह कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से करते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तविहबंधए वा, अट्ठविह बंधए वा, छब्धिह बंधए वा' जीव जब ज्ञानावरणीय कर्म का बंधकरता है और उस समय यदि आयुकर्म के बंध का समय उसका नहीं है तो वह ज्ञानावरण दर्शनावरण आदि के भेद से सात प्रकार के कर्मों का बंधक होता है। यहां पर 'वा' शब्द पक्षान्तर का सूचक है- इसलिये उसी पक्षान्तर को प्रकट करने के निमित्त सूत्रकार कहते हैं कि 'अष्टविधबंधको वा भवति' ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते हुए जोव को यदि आयुकर्म के बंध गौतम. स्वामी महावीर प्रभुने मेवो प्रश्न पूछे छे । “ जीवेणं भंते ! णाणावरणिज कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? " ३ महन्त! ७१ જ્યારે જ્ઞાનાવરણીય કર્મીને બંધ કરે છે, ત્યારે તે કેટલી કર્મપ્રકૃતિને બંધ કરે છે? तेन नाम पिता मडावीर प्रभु गौतम स्वाभान ४ 'गोयमा !" गौतम! " सत्तविहबंधए वा, अट्ठविइ बंधए वा, छबिहबंधए वा" यारे ज्ञानाવરણીય કમને બંધ કરે છે અને તે સમયે જે તેના આયુકમના બંધનો સમય ન હોય, તે તે જ્ઞાનાવરણીય, દર્શનાવરણીય આદિ સાત પ્રકારનાં કમેને બંધ કરે છે. અહીં वा" ५६ पक्षान्तनुं सुयछ, तेथा ते पक्षान्तरने प्रगट ४२१। भाटे सूत्रा२ छ "अष्टविधबंधका वा भवति" ज्ञानावराय भने। ५५ ४२ता छपने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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