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________________ १४६ भगवतीसत्रे समजलो वर्तते ? तथा किम् लवणसमुद्रः क्षुब्धजल: वेलावशात् क्षुब्धं चलितं जलं यस्य स तथाविधः ? वेला च महापातालकलशगतवायुक्षोभादागच्छति, अथवा अक्षुग्धजलः, न क्षुब्धं जलं यस्य सः तथाविधो वर्तते ? भगवानाह 'गोयमा ! लवणे णं समुद्दे उसिओदए, णो पत्थडोदए' हे गौतम ! लवणः समुद्रः खलु उच्छ्रितोदकः वर्तते नो प्रस्तृतोदकः समजलः इत्यर्थः एव 'खुभियजळे, णो अखुभियजले' स क्षुब्धजलो नो अक्षुब्धजलः, 'एत्तो आदत्तं जहा जीवाभिगमे जाव' इतः आरब्धम् लवणसमुद्र विषयकं वक्तव्यत्वम्, यथा जीवाभिगमसूत्रे तृतीयप्रतिपत्तौ प्रतिपादितम् तथाऽपि विज्ञेयम् यावत् . समजलवाला है क्या ? अथवा वेलावशसे क्षुब्ध-चलित है जल जिसका ऐसा है क्या ? वेला महापाताल कलशमें रही हुई वायुके क्षोभसे आती है । अथवा अक्षुब्ध जलवाला जिसका जल क्षुब्ध न हो एसा है क्या ? इनके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि- 'गोयमा' हे गौतम ! 'लवणेणं समुद्दे ' लवणसमुद्र उच्छ्रितोदकवाला है- क्यों कि इसके पानीका उछाल कुछ अधिक १६००० योजन तक होता है । 'ना पत्थडोदए' अतः यह समजवाला नही है । तथा इसी कारण से यह 'खुभियजले, णो अखुभियजले' क्षुब्ध - चश्चल जलवाला है. अक्षुब्ध जलवाला नही है । 'एतो' इस सूत्र से 'आदत्तं' लवणसमुद्र विषयक वक्तव्य प्रारंभ हुआ है 'जह जीवाभिगमे जाव' जीवाभिगमसूत्र में तृतीय प्रतिपत्ति में, सो जैसा वहां पर कहा गया है- उसी तरह से यहाँ पर भी जानना चाहिये. यहां 'यावत' पदसे जीवाभिगम सूत्रोक्त ન હેાય એવી–સમજળ સપાટીવાળા) છે? અથવા શું તે વેલા (ભરતી) ને કારણે ક્ષુબ્ધ (ચલિત) જળવાળે છે? (મહાપાતાલ કલશમાં રહેલા વાયુના ક્ષેાભથી લવણુસમુદ્રમાં ભરતી આવે છે) અથવા શું તે અક્ષુબ્ધ જળવાળા છે ? તેના જવાબ આપતા મહાવીર अक्षु अहे छे ! “गोयमा” हे गौतम! लवणेणं समुद्दे" सवशुसमुद्र ઉચ્છતાદકઉછળતાં પાણીવાળા છે, કારણકે તેનું પાણી ૧૬૦૦૦ યાજન કરતાં પણુ કઈક વધુ तर सुधा छ, "नोपत्थडोदए" ते अरथे ते समन्ण सपाटीवाणी नथी, "खुभियजले, णो अखुभियजले" ते क्षुब्ध (य) भगवानो छे, अक्षुब्ध (स्थिर) जवाणो नथी. "एत्तो" या सुत्रथी "आदत्तं" सवगुसभुद्रनी वतव्यताना आल थयो, जहा " जीवाभिगमे जाव" वाभिगम सूत्रमांत्रीक प्रतिपत्तिमा थे वर्षान કરવામાં આવ્યુ છે, એજ પ્રમાણે અહીં પણ લવણુસમુદ્રનું વન સમજવું. અહીં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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