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________________ ११. भगवतीसूत्रे स्तनितशब्दमपि देवोऽपि मकरोति, असुरोऽपि मकरोति, न नागः प्रकरोति गौतमः पृच्छति-'अस्थि णं भंते ! बाबरे पुढवीकाए, बायरे अगणिकाए ?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु सौधर्मेशानयोर्मध्ये बादरः पृथिवीकाय? बादरः अग्निकायः ? भगवानाह-'यो इणहे समडे, गण्णत्थ विग्गहगति समावन्नएणं' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः सौधर्मेशानयोर्मध्ये बादरः पृथिवीकायः, बादरः अग्निकायश्च न संभवतः, तथाचेह बादरपृथिवी तेजसोः स्वस्थानत्वाभावेन निषेधः कृतः, किन्तु सौधर्मेशानयोरुदधि प्रतिष्ठितत्वेन तत्र वादराकाय-वनस्पतिकाययोः संभवेन, वायोश्च सर्वत्र भावेन, एतत्त्रयाणामपि निषेधेा न कृतः, किन्तु इह 'न' शब्देन योऽयं बादरपृथिवीकायामिकाययोनिषेधः कृतो वर्तते स, विग्राहगतिसमापन्नकेन अन्यत्र बोध्यः, विग्राहगत्यापनबादरपृथिवीकायाग्निकाययोस्तु सौधर्मेशानयोशब्दके विषयमें भी जानना चाहिये-अर्थात् सौधर्म और ईशानमें मेघोंके स्तनित शब्दको भी देव करता है असुर भी करता है, पर नागकुमार नहीं करता है । अब गौतम पूछते हैं 'अस्थि णं भंते ! बायरे पुढवीकाए, बायरे अगणिकाए' कि हे भदन्त ! सौधर्म और ईशान में बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय हैं क्या ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'णो इण समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् सौधर्म और ईशानमें बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय नहीं हैं-परन्तु 'णण्णत्थ विग्गह गइसमाचन्नएणं' यह जो निषेध किया गया है वह विग्रहगति समापन्नक बादर पृथ्वीकाय और थादर अग्नि कायको छोडकर ही किया गया है। कारण विग्रहगतिसमापनक बादर पृथिवीकाय और बादर अग्निकाय इनका तो सौधर्म और गौतम स्वाभाना प्रश्न-'अस्थिणं भंते! बायरे पुढवीकाए, बायरे अगणिकाए' હે ભદન્ત! સૌધર્મ અને દેવલેકમાં શું બાદર પૃથ્વીકાય અને બાદર અસ્તિકાય હોય છે ખરાં? महावीर प्रभुने। उत्तर-णो हणने समर गौतम! सोधम भने ध्यान ४६पामा ६२ पृथ्वीडाय भने माह२ मयि नथी, ५२-तु 'णण्णत्थ विग्गहगइ समावबएणं' निष५ ४२पामा माया छ ते वितिसमापन्न माहर પૃથ્વીકાય અને બાદર અગ્નિકાયને છોડીને જ કરાય છે. કારણ કે તે અને કામાં વિગ્રહગતિસમાપન્નક બાદર પૃથ્વીકાય અને આદર અગ્નિકાય તે સંભવી શકે છે–તથા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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