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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श. ६ उ. ८ सू. १ पृथ्वीस्वरूपनिरूपणम् १०९ हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः; सौधर्मशानयोः कल्पयोर्मध्ये गेहादयो न संभवन्ति । गौतमः पृच्छति--:अस्थि णं भंते ! उराला बलाहया० ?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु सौधर्मेशानयोः उदारा बलाहकाः संस्विद्यन्ति संमृर्छन्ति, वर्षा वर्षन्ति ? भगवानाह-'हंता, अत्थि' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् अस्ति संभवति यत्-सौधर्म शानयोर्मध्ये मेघाः संस्विधन्ति, संमूर्च्छन्ति, वर्षा वर्षन्ति च, किन्तु तत्संस्वेदनादिक 'देवो पकरेइ, असुरोवि पकरेइ, णो णागो पकरेइ' देवोऽपि प्रकरोति, असुरोऽपि प्रकरोति, परन्तु नो नागा=नागकुमारः प्रकरोति, तथा च सौधर्म शानयोर्मध्ये चमरवत् असुरो गच्छति, किन्तु नागकुमारोऽशक्तत्वात् न गच्छति। 'एवं थणिय सद्देवि ' एवं स्तनितशब्दोऽपि बोध्यः तथाच सौधर्म शानयोमध्ये मेघानां नहीं है अर्थात् सौधर्म और ईशान में घर आदि संभवित नहीं हैं। अब गौतम प्रभु से पूछते हैं-' अत्थिणं भंते ! उराला बलाहया०' हे भदन्त ! क्या यह बात संभवित होती है कि सौधर्म और ईशान कल्पमें उदार विशाल बलाहका-मेघ संस्वेदन करते हैं, संमूर्छन करते हैं और वर्षण-वृष्टि करते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'हंताअत्थि' हां, गौतम ! यह बात संभवित होती है कि सौधर्म और ईशान इन कल्पोंमें मेघ संस्वेदन करते हैं, समूच्छन करते हैं और वरसते हैं। किन्तु यह संस्वेदन आदि वहां पर 'देवो पकरेइ असुरो वि पकरेइ णो णागो पकरेइ' देव करते हैं, असुरकुमार भी करते हैं पर नागकुमार नहीं करते हैं। क्योंकि सौधर्म और ईशान में चमरकी तरह असुर तो जाता है, पर नागकुमार अशक्त होने के कारण नहीं जाता है । ' एवं थणियसद्दे वि' इसी तरहसे स्तनित प्रश्न-'अत्थिणं भंते ! उराला बलाहया? महन्त ! शुसीधम भने ઈશાન કમ્પમાં વિશાળ મેદ્યનું સંસ્વેદન, સમૂરઈન અને સંવર્ષણ સંભવિત છે ખરું? उत्तर-'हंता, अत्थि' , गौतम! त्या भानु संवहन माह थाय छे. ते सरवहन माहिय' 'दोवो पकरेइ, असुरो वि पकरेइ, णो णागो पकरेई' દેવ કરે છે, અસુરકુમાર પણ કરે છે, પણ નાગકુમાર કરતા નથી. તેનું કારણ એ છે કે સૌધર્મ અને ઈશાન ક૫માં ચમરની જેમ અસુર તો જાય છે, પણ નાગકુમાર त्यing शता नथी. एवं थणियस विमे प्रमाणु स्तनित (मेघना) વિષે પણ સમજવું. એટલે કે સૌધર્મ અને ઇશાન કલ્પમાં સ્વનિત શબ્દ દેવ પણ કરે છે, અસુરકુમાર પણ કરે છે, પરન્તુ નાગકુમાર કરતા નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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