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________________ भगवतीसत्रे यावत्करणात-सूर्यः, ग्रहगणः, नक्षत्रम्' इति संग्राह्यम्, भगवानाह-'णो इणद्वे समढे हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः रत्नप्रभायाः मध्ये चन्द्रादयो नैव संभवन्ति । गौतमः पृच्छति-'अत्थिणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढचीए चंदाभा इवा, मुरा मा इवा ?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां चन्द्रामा चन्द्रप्रकाशः इति वा, मूर्याभा सूर्यप्रकाशः इति वा ? भगवानाह-'णो इणद्वे समद्वे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, रत्नप्रभायां चन्द्रामा सूर्याभा च नैव संभवतः, 'एवं दोच्चाए पुढवीए भाणियव्वं' एवं रत्नप्रभावदेव द्वितीयायामपि शर्कराप्रभायां पृथिव्यां गेहादिमरूपणं भणितव्यम् वक्तव्यम्, 'एवं तच्चाए वि भाणियव्वं' एवं रत्नप्रभावदेव तृतीयायामपि वालुकाप्रभायां पृथिव्यां गेहादि 'अहे' पदका प्रयोग आ रहा है वह इसलिये आ रहा है कि अधोलोक के नीचे है। यहां यावत्पदसे 'सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र' इनका ग्रहण हुआ है । इसके उत्तरमें पभु उनसे कहते हैं कि 'णो इणद्वे समढे' हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् रत्नप्रभा के बीचमें चन्द्रादिक नहीं पूछते है-'अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाएपुढवीए चंदाभाइ वा, सूरा भाइ वा' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवीमें चन्द्रप्रभा चन्द्रप्रकाश और सूर्यप्रभा-सूर्यप्रकाश दोनों हैं क्या ? उसके उत्तरमें प्रभु कहते है ‘णो इणद्वे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् रत्नप्रभा में न चन्द्रप्रकाश है और न सूर्यप्रकाश है। एवं दोचाए पुढवीए भाणियव्यं' इसी प्रकारसे अर्थात् रत्नप्रभा पृथिवीके समान ही द्वितीय शर्करापृथिवी में भी गेहादिकोंकी प्ररूपणा करलेनी चाहिये । एवं तच्चाए विभाषियन्वं' इसी तरहसे तृतीय बालुका प्रभामें भी गेहादिकोंकी प्ररूपणा करलेनी (અહીં સૂત્રમાં જે “ પદને પ્રેગ થયે છે તેનું કારણ એ છે કે રત્નપ્રભા પૃથ્વી અલકની નીચે છે.) तेन। उत्तर मापता महावीर प्रभु ४ छ-'णो इणद्रे समद्रे' गीतम! રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં ચન્દ્રાદિનો સદ્ભાવ નથી. गौतम २वामीन। YA- 'अत्थिणं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढबीए चंदाभाइवा, सराभाइ वा ? हे महन्त ! | Renu Yीमा यन्द्र भने सूर्य ना प्राथना समाव छ ? उत्त२-'णी इणने समद्रे' डे गौतम! Reनमा वीमा ચન્દ્રને પ્રકાશ પણ સંભવિત નથી અને સૂર્યને પ્રકાશ પણ સંભવિત નથી. 'एवं दोच्चाए पुढवीए भाणियन्वं' २नला पृथ्वीना विषयमा मा सत्रमा रवी પ્રરૂપણ કરવામાં આવી છે, એવી જ પ્રરૂપણા શર્કરા પૃથ્વી નામની બીજી પૃથ્વીના विषयमा ५५ समपी. 'एवं तच्चाए वि भाणिय से प्रभारी श्री શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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