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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ० ३ सू० ४ कर्म स्थिति निरूपणम् ९२५ , तिती भात्रः । ' वेयणिज्जं देहिला बंधंति ' वेदनीयं कर्म अधस्तनाः आद्यास्त्रयो मनोवचः काययोगिनः बध्नन्ति, सयोगानां वेदनीयवन्धकत्वात्, 'अजोगी न बंध' अयोगी वेदनीयं कर्म न बध्नाति, अयोगिनः सर्वकर्मान्धकत्वात् । अथ उपयोगविषयक बंधद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति - णाणावर णिज्जं णं भंते कम्मं किं सागारोवउत्ते बंध' हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयं कर्म किम् साकारोपयुक्तो बध्नाति ? ' अणागारोवउत्ते बंधइ ? ' अनाकारोपयुक्तो वा बध्नाति ? भगवानाह - ' गोयमा ! अयोगी जीव इन कर्मप्रकृतियों का बंध नहीं करता है (वेयणिज्जं ला बधति) वेदनीय कर्म का बंध तीनों योग वाले करते हैं। क्यों कि तीनों योगवालों को वेदनीय कर्म का बंधक माना गया है। (अजोगीन बंधइ ) अयोगी जीव वेदनीय कर्म का बंध नहीं करता है । क्यों कि अयोगी जीव के किसी भी कर्म का बंध नहीं होता है। अब सूत्रकार उपयोग विषयकबंधद्वारको आश्रित करके ज्ञानावरणीय आदिम बांधने विषयमें कथन करते हैं - इसमें गौतमप्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि - ( णाणावर णिज्जं णं भंते! कम्मं किं सागारोव उसे बंधइ ? अणगारोव बंध ? ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कौन से उपयोग वाला जीव करता है ? क्या जो साकारोपयोग से युक्त होता है अर्थात् ज्ञानोपयोगवाला होता है वह करता है ? या अनाकारोपयोगवाला होता है अर्थात् दर्शनोपयोगवाला होता है वह करता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि - ( गोयमा) हे गौतम! उर्भ प्रतियोना गंध उही पशु ४२ता नथी. ( वेवणिज्ज' हेट्ठिल्ला बंधति ) વેદનીય કર્માંના બંધ ત્રણે ચાગવાળા જીવા કરે છે, કારણ કે ત્રણે ચેગવાળા लवाने वेहनीय अर्मना अंध मानवामां आवेला छे, ( अजोगी न बधइ ) પણ અયાગી જીવ વેઢનીય કર્માંના બંધ કરતા નથી, કારણ કે અયાગી જીવને કોઈ પણ કમને! બંધ થતા નથી. હવે ગૌતમ સ્વામી ઉપયાગ દ્વારને અનુલક્ષીને જ્ઞાનાવરણીય આફ્રિ भेना बंधना विषयमा महावीर प्रभुने या प्रमाणे प्रश्न पूछे छे - ( णाणा. वरणिज्ज ं णं भंते ! कम्म कि सागारोवउत्ते बधइ ? अणागारोवउत्ते बधइ ? ) હે ભદન્ત ! જ્ઞાનાવરણીય કાઁના બંધ કયા પ્રકારના ઉપયોગવાળા જીવ કરે છે? શું સાકાર ઉપયોગવાળા છત્ર ( જ્ઞાનાપયેાગવાળા જીવ દશનાપયેાગવાળે જીવ) તેના બંધ કરે છે ? श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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