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भगवतीसूत्रे भिन्नः सम्यग्दृष्टिर्ज्ञानावरणं कर्म बध्नाति, वीतरागश्च सम्यग्दृष्टिः शातावेदनीयरूपेकविधकर्मबन्धकत्वात् ज्ञानावरणं कर्म न बध्नाति इत्यभिप्रायेणाहस्यात् कदाचित् अवीतरागावस्थायां ज्ञानावरणं कम बध्नाति, स्यात् कदाचित्वीतरागावस्थायां ज्ञानावरणं कर्म न बध्नाति, 'मिच्छदिट्ठी बंधइ, सम्मामिच्छ. दिट्ठी बंधइ ' मिथ्यादृष्टिबध्नाति, सम्यग्रमिथ्याष्टिः मिश्रष्टिरपीत्यर्थः बध्नाति 'एवं आउगवज्जाओ सत्त वि' एवम् अनेन प्रकारेण आयुष्कवर्जाः सप्तापि कर्मप्रकृतयो विज्ञेयाः दर्शनावरणादिकर्माण्यपि आयुष्यवर्जितानि सम्यग्दृष्टिः
सम्यग्दृष्टि दो प्रकार का होता है एक वीतराग सम्यग्दृष्टि और दूसरा वीतरागभिन्न सम्ग्दष्टि; इनमें जो वीतरागभिन्न सम्यगदृष्टि जीव है घह तो ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है और जो वीतराग सम्यगू. दृष्टि जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करता है। वह तो केवल एक विध-शातावेदनीयरूप-कर्मका ही बंध करता है-इसी कारण ऐसा कहा है कि जो सम्यगदृष्टि जीव अवीतराग है-अर्थात् सरागस. म्यग्दृष्टि है-वह ज्ञानावरण कर्म का बंध करता है और जो सम्घमूदृष्टि धीतराग है-वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करता है। मिच्छादिही बंधइ, सम्मामिच्छाद्दिट्टी बंधइ) परन्तु जो मिथ्यादृष्टि जीव है वह और जो मिश्र दृष्टि जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है। (एवं आउगवजाओ सत्त वि) इस द्वार में ज्ञानावरणीय कर्म का बंध की तरह से ही आयु को छोड़कर शेष-दर्शनावरणीय आदि कर्मों के बांधने
નથી પણ બાંધતે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-સમ્યગ્દષ્ટિ બે પ્રકારના હોય છે-વીતરાગ સમ્યગ્દષ્ટિ અને વીતરાગ ભિન્ન સમ્યગ્દષ્ટિ. આ બને પ્રકારના સમ્યગ્દષ્ટિ જમાનો વીતરાગ ભિન્ન સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે, પણ વીતરાગ સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરતો નથી. તે તે માત્ર શાતાદનીય કર્મને જ બંધ કરે છે. તે કારણે એવું કહ્યું છે કે જે સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ અવીતરાગ છે–એટલે કે સરાગ સમ્યગ્દષ્ટિ છે, તે તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે, પણ જે સમ્યગ્દષ્ટિ વીતરાગ
डाय छे ते ज्ञानावरणीय भने। 'ध नथी. (मिच्छादिलो बंधह, सम्मामिच्छादिद्वी बंधइ) ५२तु मिथ्याल्टि १ तथा मिश्रष्ट १ ज्ञाना. १२णीय भनी म रे छे. ( एवं आउावज्जाओ सत्त बि) मारमा આયુકર્મ સિવાયના સાતે કર્મોને બંધ બાંધવા વિષેનું સમસ્ત કથન જ્ઞાના
श्रीभगवती सूत्र:४