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________________ भगवतीसूत्रे भजनया, उपरितनो न बध्नाति । ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं सम्यग्दृष्टिनाति, मिथ्यादृष्टिबध्नाति. सम्यगूमिथ्यादृष्टिबध्नाति ? गौतम ! सम्यगदृष्टिः स्याद् बध्नाति, स्याद् न बध्नाति, मिथ्याष्टिर्बध्नाति, सम्यम् मिथ्यादृष्टिबध्नाति, एवम्-आयुष्क वर्जाः सप्ताऽपि, आयुष्कम् अधस्तनौ द्वौ भजनया, सम्यमिथ्यादृष्टिर्न बध्नाति । ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म कि संज्ञी और नहीं भी बांधता है। पर जो जीव नो संयत, नो असंयत या नो संयतासंयत होते हैं वे नहीं बांधते हैं । (णाणावरणिज्जणं भंते ! कम्म किं सम्मदिट्टी बंधइ, मिच्छदिट्टी बंधह, सम्मामिच्छट्टिी बंधह) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या सम्यग्दृष्टि जीव बांधता है ? या मिथ्यादृष्टि जीव बांधता है ? (गोयमा! सम्मट्ठिी सिय बंधइ, सिय णो बंधइ, मिच्छट्टिी बंधइ, सम्मामिच्छट्टिीबंधइ ) हे गौतम ! जो जीव सम्दृष्टि होता है वह ज्ञानावरणीय कर्म बांधता भी है और नहीं भी बांधता है। पर जो जीव मिथ्यादृष्टि या सम्यक् मिथ्यादृष्टि होता है वह तो बांधता ही है। (एवं आ उगवज्जाओ सत्त वि आउए हेहिला दो भयणाए, सम्मामिच्छट्ठिी न बंधइ ) इसी तरह से आयुकर्म को छोड़कर बाकी के सातकर्मों को बांधने के विषय में भी जानना चाहिये । आयुकर्म के विषय में ऐसा समझना चाहिये कि जो जीव सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि होता है वह आयुकर्म का बंध करता भी है-और नहीं भी करता है परन्तु जो सम्यकमियादृष्टि जीव હેય, અથવા તે ને સંયતાસંયત હેય, તેઓ આયુકર્મ બાંધતા નથી. ___णाणावरणिज्ज णं भते ! कि सम्मदिदो बधइ, मिच्छदिदी बधइ, सम्मामिछदिदी बधइ ? ) 3 महन्त शुं ज्ञानापरणीय भ सभ्यष्टि ७१ मधे છે? કે મિથ્યાદૃષ્ટિ જીવ બાંધે છે કે સમ્યગૃમિથ્યાદષ્ટિ જીવ બાંધે છે? (गोयमा ! ) है गौतम ! (समहिट्ठी सिय बघइ, सिय णो बधइ, मिच्छदिदी बधइ, सम्मामिच्छदिदी बधा) हे गीतम! सभ्यष्टि 4 या२४ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે અને કયારેક નથી બાંધતે, પરંતુ મિથ્યાદષ્ટિ જીવ અથવા તે સમ્યક્ મિથ્યાષ્ટિ જીવ તો જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે જ. ( एवं आउगवज्जाओ सत्त वि, आउए हेटिल्ला दो भयणोए, सम्मामि च्छदिदी न बधइ) मायुभ सिवायना साते भ विषे मा प्रमाणे સમજવું. આયુકમના બંધ વિષે નીચે પ્રમાણે સમજવું–જે જીવ સમ્યગદષ્ટિ હોય છે અથવા તે મિથ્યાષ્ટિ હોય છે તે આયુકર્મને બંધ કયારેક બાધે છે અને કયારેક નથી બાંધતો. પરંતુ જે જીવ સમ્યક મિથ્યાદષ્ટિ હોય છે તે આસુકર્મને બંધ કરતા નથી. श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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