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प्रमेयचन्द्रिका टो श० ६ ० ३ ० ४ कर्मस्थितिनिरूपणम् ८८३ बध्नाति, असंज्ञी वध्नाति, नोमज्ञि नोअसंज्ञि बध्नाति ? गौतम ! संज्ञी स्याद् बध्नाति, स्याद् न बध्नाति, असंज्ञी बध्नाति, नोसंज्ञि-नोअसंज्ञी न बध्नाति, एवं वेदनीया-ऽऽयुकवर्जाः षट् कर्मप्रकृतयः, वेदनीयम् अधस्तनौ द्वौ बध्नीतः, उपरितनो भजनया, आयुष्कम् अधस्तनौ द्वौ भजनया, उपरितनो न बध्नाति । होता है वह इस स्थिति में आयुकर्म का बंध नहीं करता है । ( णाणा. वरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सन्नी बंधइ, असन्नी बंधइ, णो सन्नी, णो असनी बन्धइ ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कौन जीव करता है-क्या जो जीव संज्ञी होता है वह करता है ? या जो जीव असंज्ञी होता है वह करता है ? (नो असन्नी बंधइ ) अथवा जो नो संज्ञी होता है वह या जो असंज्ञी होता है वह करता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (सन्नी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, असन्नी बंधइ, नो सन्नी, नो असन्नी न बन्धइ ) जो संज्ञी जीव होता है व ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता भी है, और नहीं भी करता है । जो असंज्ञी जीव होता है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है। पर जो नो संज्ञी असंज्ञी जीव २ हैं वे इस ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करते हैं। (एवं वेयणिज्जाउगवज्जाओ छ कम्मप्पयडीओ, वेयणिज्ज हेढिल्ला दो बंधंति, उवरिल्ले भयणाए, आउगहेडिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बधइ ) इसी तरह से वेदनीय और आयु के सिवाय छ कर्म प्रकृ. तियों के विषय में भी कथन जानना चाहिये। वेदनीय कर्म का बंध
(णाणावरणिज्जं गं भते ! कम्मं कि सन्नी बधइ, असन्नो बधइ, णो सन्नो, णो असन्नी बधइ) महन्त ! ज्ञाना१२६४ीय भनी म शुं सभी જીવ બાંધે છે ? કે અસંજ્ઞી જીવ બાંધે છે? અથવા જે ને સંસી હોય છે તે બાંધે છે કે જે ને અસંશી હોય તે બધે છે?
(गोयमा ! ( सन्नी सिय बधइ, सिय नो बधइ, असन्नी बंधइ, नो सन्नी, नो असन्नी न बंधइ) सी ज्ञाना२णीय भने। मध ४२ ५६ छ અને નથી પણ કરતો, અસંસી જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે, પણ ને સંજ્ઞી અને ને અસંસી જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરતા નથી.
(एवं वेयणिज्जागवज्जाओ छ कम्मप्पयडीओ, वेयणिजं हेदिल्ला दो बधाति, उवरिल्ले भयणाए, आउग' हेछिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बधइ) 0 - રનું કથન વેદનીય અને આયુકમ સિવાયની છ કર્મપ્રકૃતિના વિષયમાં પણ સમજવું. સંજ્ઞી જીવો વેદનીય કર્મને બંધ કરે છે, અસંસી વેદનીય
श्री भगवती सूत्र:४