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________________ भगवतीस्त्र अनादिकम् सपर्यवसितं सान्तम् , ' णो अणाइए अपज्जवसिए ' नो अनादिकम् अपर्यवसितम् अनन्तम् , ' तहा णं जीवा णं किं साइया सपज्जवसिया, चउभंगो पुच्छा ? ' तथा खलु जीवाः किम् सादिकाः सपर्यवसिताः सान्ताः ? चतुर्भङ्गम्नो सादिकाः अपर्यवसिताः अनन्ताः ? नो वा अनादिकाः सपर्यवसिताः सान्ताः ? न वा अनादिकाः अपर्यवसिताः अनन्ताः भवन्ति किम् ? इति पृच्छा प्रश्नः ? भगवानाह-' गोयमा ! अत्थेगइया साइया सपज्जवसिया, चत्तारि वि भाणियव्या' हे गौतम ? सन्ति यत्-एकके कतिपये जीवाः सादिकाः सपर्यवसिताः सान्ताः भवन्ति, चत्वारोऽपि भवितव्याः तथा च कतिपये जीवाः सादिकाः अपर्यवसिताः अनन्ताः, कतिपये च अनादिकाः सपर्यवसिताः सान्ताः, कतिपये तु अनादिकाः ज्जवसिए ) अनादि सान्त नहीं कहा (णो अणाइए अपज्जवसिए) और न अनादि अनन्त ही कहा है (तहा णं जीवाणं किं साइया सपज्जवसिया चउभंगो पुच्छा ) तो क्या इसी तरह से जीव भी केवल सादि सान्त ही हैं ? वे सादि अनन्त नहीं हैं ? अनादि सान्त नहीं हैं ? अनादि अनन्त नहीं हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने उनसे कहा -(गोयमा) हे गौतम! जीवों के विषय में ऐसी बात नहीं है क्यों कि (अत्थेगहया साह्या सपज्जवसिया) कितनेक जीव ऐसे भी हैं जो सादि सान्त हैं, ( चत्तारि वि भाणियव्वा) कितनेक जीव ऐसे हैं जो सादि अपर्यवसित-अनन्त हैं। कितनेक जीव ऐसे भी हैं जो अनादि सान्त हैं और कितनेक जीवऐसे हैं जो अनादि अनन्त हैं। इस प्रकार से जीव के विषय में प्रभु का प्रतिपादन सुनकर गौतम ने ऐसे कथन का अपज्जवसिए ) मनाहि गनत युं नथी, ( तहाणं जीवाणं किं साइया सपज्जवसिया, चउभंगो पुच्छा ) मेरी प्रभाये शुं । ५५ मात्र सात सान्त છે? શું તેઓ સાદિ અનંત નથી ? શું તેઓ અનાદિ સાન્ત નથી? શું તેઓ અનાદિ અનંત નથી ? तेना उत्तर २५ मडावीर प्रभुसे यूं-( गोयमा ! ) वान विष. यमा सवी वात नथी. ( अत्थेगइया साइया सपज्जवलिया ) 21 वे सवा डाय छ २ साहि सान्त डाय छ, (चत्तारि वि भोणियवा) मा । એવાં હોય છે કે જે સાદિ અનંત હોય છે, કેટલાક જીવ એવા પણ હોય છે કે જે અનાદિ સાત હોય છે, અને કેટલાક જી એવાં હોય છે કે જે અનાદિ અનંત હોય છે. श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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