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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ३० ३ सू० ३ कम पुनलोपचयस्वरूपम् ८५५ भदन्त ! वस्त्रं खलु किम् सादिकम्-सपर्यवसितम् सान्तम् ? १, चतुर्भङ्गम् ?चत्वारो भङ्गा भवन्ति किम् ? सादिकम् अपर्यवसितम्-अनन्तम् २ अनादिकम्सपर्यवसितम् सान्तम् ३ ? अनादिकम्-अपर्यसितमनन्तं ४ ? भवति किम् ? भगवान् आह-' गोयमा ! वत्थे साइए सपज्जवसिए, ' हे गौतम ! वस्त्रं सादिकंसपर्यवसितम् सान्तं भवति' अवसेसा तिनि वि पडि से हेयव्या' अवशेषाः सादिसान्तभिन्नास्त्रयोऽपि भङ्गाः प्रतिषेधयितव्याः न वाच्या इत्यर्थः । तथा च वस्त्रं नो सादिकम् अनन्तम् , नो वा अनादिकम्-सान्तम् , नापि अनादिकम्अनन्तम्-इति भावः । गौतमः पुनः पृच्छति-'जहा णं भंते ! वत्थे साइए सपज्जवसिए' हे भदन्त ! यथा खलु वस्त्रं सादिकं सपर्यवसितम् सान्तम् , नो साइए अपज्जवसिए' नो सादिकम् अनन्तम् , ' णो अणाइए सपज्जवसिए' नो भो सान्त है ? या सादि होकर भी अनन्त है ? या अनादि सान्त है ? या अनादि अनन्त है ? इस प्रकार से वस्त्र के विषय में गौतम ने ये चार भंग प्रभु से पूछे-इसके उत्तर में प्रभु ने उनसे कहा ( गोयमा! वत्थे साइए सपज्जवसिए) हे गौतम ! वस्त्र सादि सान्त है। (अवसेसा तिनिवि पडिसेहेयव्या) सादि अनन्त वह नहीं है, अनादि सान्त वह नहीं है और न वह अनादि अनन्त ही है-इस प्रकार से अवशेष तीन भङ्गों का यहां प्रभु ने प्रतिषेध किया अब इसी दृष्टान्त से गौतमस्वामी प्रभु से यह पूछते हैं कि-(जहा णं भंते ! वत्थे साइए सपज्जवसिए) हे भदन्त ! जिस प्रकार से आपने वस्त्र को सान्त कहा है (नो साइए अपज्जवसिए) सादि अनन्त नहीं कहा है, (णो अणाइए सपકે સાદિ અનંત હોય છે? કે અનાદિ સાન્ત હોય છે? કે અનાદિ અનંત હોય છે? વસ્ત્રના વિષે આ પ્રકારના ચાર ભેગે (વિક) ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર પ્રભુને પૂછયા. तेन ४५५५ माता मडावीर प्रभु ४ छे-(गोयमा ! ) 3 गौतम ! (वत्थे साइए सपज्जवसिए) व साहि सान्त राय छे, (अवसेसा तिन्नि वि पडिसेहेयव्वा ) ते सा मन डोतुं नथी, मनाहि सान्त उतु नथी मरे અનાદિ અનંત પણ હોતું નથી. આ રીતે બાકીના ત્રણ વિકલ્પને નકારાત્મક જવાબ આપે છે હવે એ જ દૃષ્ટાન્તને આધારે ગૌતમ સ્વામી જેના વિષયમાં નીચે પ્રશ્ન પૂછે છે– (जहाणं भंते ! वत्थे साइए सज्जवसिए) महन्त ! म मापे वखने सालि भने सन्त थु छ, (नो साइए अपज्जवसिए ) साह मानत छु नथी, (णो अणाइए सपज्जवसिए) मा सान्त युं नथी, मने ( णो अणाइए श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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