________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०६ उ० ३ ० १ महाकाल्पकर्मनिरूपणम् ८२९ ‘से केणटेणं. ' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन एवं पूर्वोक्तमुच्यते यत् तस्यात्मा यावत्-सुखतया नो दुःखतया परिणमति ? भगवानाह-' गोयमा ! से नहानामए वत्थस्स जल्लियस्स वा, पंकियस्स वा ' हे गौतम ! तत् यथा नामवस्त्रस्य जल्लितस्य शरीरमलोपेतस्य वा, पङ्कितस्य-आर्द्रमलोपेतस्य वा 'मइल्लियस्स वा, रइल्लियस्स वा' मलितस्य-कठिनमलयुक्तस्य वा, रजस्कितस्य-रजोयुक्तस्य धूलिधूमरित स्य वा, ' आणुपुबीए परिकम्मिज्जमाणस्स' आनुपूर्व्या अनुक्रमेण परिकर्यमाणस्य मलापनयनाथ क्षारादिद्रव्येण शोध्यमानस्य 'सुटेणं वारिणा धोव्वेमाणस्स' शुद्धेन निर्मलेन स्वच्छेन वारिणा जलेन धाव्यमानस्य प्रक्षाल्यमानस्य वस्त्रस्य परिणम जाता है ! अब गौतम इस विषय में प्रभु से कारण जानने की इच्छा से (से केणढेणं.) ऐसा प्रश्न करते हैं वे पूछते हैं कि हे भदन्त ! आपऐप्ता किस कारण को लेकर कहते हैं कि उसका आत्मा-शरीर यावत् सुखरूप से-दुःखरूप से नहीं परिणमता है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि (गोयमा से जहा नामए वत्थस्स जल्लियस्स वा, पंकियस्स वा) हे गौतम! जैसे कोई एक वस्त्र हो और उसके ऊपर शरीर का मल लगा हो, अथवा कोई ताजी गीली कीचड़ लगी हो मइल्लियस्स वा, रईल्लियस्स वा) या कोइ उसके ऊपर कठिन मैल लगा हो, या धूल उस पर चिपकी हो-धूलसे धूसरित बना हुआ हो ऐसा वह वस्त्र हो तो वह जप (अणुपुवीए परिकम्मिजमाणस्स) बार २ धो धाकर साफ किया जाता है अर्थात्-क्षारद्रव्य से जब मैल दूर करने के लिये वह धोया जाता है (सुद्धणं वारिणा धोव्वेमाणस्स) और निमल-साफ-जल से जब वह निखारा जाता है, तो (सव्वओ पोग्गला હોય છે. તેમને આત્મા સુખરૂપે પરિણમે છે, ત્યાં સુધીનું સમસ્ત કથન ગ્રહણ ४२ " से केणटेणं " 3 महन्त ! मा५ ॥ ४.२0 मेj ४४१ छ ?
આ પ્રશ્નને ઉત્તર આપતાં મહાવીર પ્રભુ નીચેનું દૃષ્ટાંત આપે છે_ (गोयमा ! से जहा नामए वत्थस्स जल्लियस्स वा, पंकियस्स वा) गौतम કઈ એક વસ્ત્રને શરીરને મેલ, પરસેવે વગેરે લાગેલાં હોય, અથવા તેના ९५२ तल भीनी माटी सभी डेय, “ मइल्लियस्स वा, रइल्लियस्स वा " अथवा तेना 6५२ धूजन २४४॥ यांटयां डेय, मेवा वसने क्यारे “ आणुपुठवीए परिकम्मिज्जमाणस्स" पारंवार घ ने सा३ ४२वामा भाव छ-मेटले सो २१॥ क्षारयुत पीथी तेन भेद ३२ ४२वामा भाव छ, (सद्धेण वारिणा धोवेमाणस) भने निम पापीमा ल्यारे तेने तारामा मावे छे, त्यारे
श्री. भगवती सूत्र:४