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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०६ १०१ सू० २ करणस्वरूपनिरूपणम् ७८७ गौतम ! असुरकुमाराणां चतुर्विधं करणं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-मनस्करणम् , वचस्करणम् , कायकरणम् , कर्मकरणम् , इत्येतेन शुभेन करणेन अमुरकुमाराः करणतः सातां वेदनां वेदयन्ति, नो अकरणतः । एवं यावत्-स्तनितकुमाराणाम् । पृथिवीकायिकानाम्-एवमेव पृच्छा ? नवरम्-इत्येतेन शुभाशुभेन करणेन पृथिवीका (गोयमा) हे गौतम ! ( करणओ णो अकरणओ) असुरकुमार करण से शातावेदनाका वेदन करते हैं-अकरण से वे शातावेदना का वेदन नहीं करते हैं । ( से केणखूण ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा ! असुरकुमाराणचउबिहे करणे पणत्ते) हे गौतम असुरकुमारों के चार प्रकार के करण कहे गये हैं (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं (मणकरणे, वयकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे) मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण (इच्चेएणं सुभेणं करणेण असु. रकुमाराण करणओ सायं वेयण वेयंति ) इन शुभ करणों से असुरकु मार शातावेदनाका वेदन करते हैं इस कारण वे करणसे शातावेदन का वेदन करते हैं (णो अकरणओ) अकरण से शातावेदना का वे वेदन नहीं करते हैं (एवं जाव थणियकुमाराण) इसी तरह से यावत् स्तनि. तकुमारों के भी जानना चाहिये। ( पुढवीकाइयाण एवामेव पुच्छा) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव करण से शाता और असातारूप वेदना का अनुभव करते हैं ? या अकरण से शाता और अशाता वेदना का छ १ ( गोयमा ! करणओ, णो करणओ) 3 गौतम ! ४२४थी शतावनानु वन ४२ छ, ती म४२४थी शतावहनानुं वहन ४२ता नथी. (सेकेण? णं) 3 महन्त ! मा५ ।। १२0 मे । छ। १ ( गोयमा ! असुरकुमाराण चउ. विहे करणे पण्णत्ते ) गौतम ! ससुरशुभाशनां या२ प्रा२न ४२५ घi छे, (तजहा ) 2 3 (मणकरणे, वयकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे) भन ४२६४, क्यन४२४, य४२११ मने भ४२६. (इच्चेएणं सुभेणं करणेणं असुरकुमाराण करणओ साय वेयण वेयति ) ते शुभ ४२ थी मसु२४मारे। शत. વેદનાનું વેદન કરે છે. તે કારણે તેઓ કરણેથી શતાવેદતાનું વેદન કરે છે. ( णो अकरणओ ) ४२४थी शातावेहनानु वेहन ४२ता नथी. { एवं जाव थणि. यकुमाराण') स्तनितभा२ ५यन्तना हेवाना विषयमा ५५ सेम ४ सम४. ( पुढवीकाइयाण एवामेव पुच्छा ) 3 महन्त ! पृथ्वीय छ। ४२४थी शाता વેદના અને અશાતા વેદનાનું વેદન કરે છે, કે અકરણથી શાતા વેદના અને અશાતવેદનાનું વેદન કરે છે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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