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________________ ___ भगवतीसूत्रे ७८८ यिकाः करणतो विमात्रया वेदनां वेदयन्ति, नो अकरणतः। औदारिकशरीराः सर्वे शुभाशुभेन विमात्रया । देवाः शुभेन ।। टीका-'कइविहे णं भंते ! करणे पण्णत्ते ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कतिविधं कियत्प्रकारम् खलु करणं सुखदुःखानुभवनिमित्तभूतं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह अनुभव करते हैं ? (णवरं-इच्चेएण सुभाऽसुभेणं करणेण पुढवीकाइया करणओ वेमायाए वेयण वेयंति, णो अकरणओ) हे गौतम ! पृथिवीका. यिक जीव शुभाशुभ कितने भेद कदाचित् शातारूप और कदाचित् अशातारूप वेदना का अनुभव करते हैं। अकरण से-करण के विना नहीं । यही यहां पर विशेषता है । (ओरालिय सरीरासव्वे सुभासुभेणं करणेण वेमायाए-देवा सुभेणं सायं ) जितने भी औदारिक शरीरवाले जीव हैं वे सब ही शुभ और अशुभरूप करण से ही दोनों प्रकार की वेदना का अनुभव करते हैं देव शुभकरण से केवल शातावेदना का अनुभव करते है। टीकार्थ-पहिले जीवों की वेदना का कथन किया गया है। वह वेदना करण द्वारा होती है इस कारण सूत्रकार इस सूत्र से उसी का निरूपण कर रहे हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि-"कइविहेण भंते ! करणे पण्णत्ते ) हे भदन्त ! करण कितने प्रकार का होता है ? सुख और दुःख के अनुभव करने में जो निमित्त भूत होता है उसका नाम करण है सो इस करण के कितने भेद हैं ? इस (णवर-इच्चेएणं सुभाऽसुमेणं करणेणं पुढविक्क'इया करणओ वेमायाए वेयणं वेयंति, णो अकरणओ) गौतम ! पृथ्वीजय ७ शुभाशुम ४२०४थी २४ च्या२४ શાતા વેદનાનું વેદન કરે છે અને કયારેક અશાતા વેદનાનું વેદન કરે છે, અકरणथी तेस तेनुं वहन ४२॥ नथी, मेसी मही विशेषता छ. ( ओरालिय सरीरा सव्वे सुभासुभेण' करणेण वेमायाए देवा सुभेण सायं ) समस्त मोहार શરીરવાળા શુભ અને અશુભરૂપ કરણથી જ બન્ને પ્રકારની વેદનાનું વેદન કરે છે. દેવ શુભકરણથી ફક્ત શાતવેદનાનો જ અનુભવ કરે છે. ટકાથ–આગલા પ્રકરણમાં જીવેની વેદનાનું કથન કરવામાં આવ્યું છે. તે વેદના કરણ દ્વારા થતી હોય છે. તે કારણે સૂત્રકાર આ સૂત્રમાં કરણનું નિરૂપણ કરે છે. गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सो प्रश्न ५छ “कइविहेण भते ! करणे पण्णत्ते ?” महन्त ! ४२६४ Beai ४२i si छ १ (सुम अने દુઃખનો અનુભવ કરવામાં જે નિમિત્તરૂપ હોય છે, તેને કરણ કહે છે.) श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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