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भगवतीस्त्र त्वेन दृढतया संबदाति, 'चिकणीकयाई' चिक्कणीकृतानि, अत्यन्तस्निग्धतया दुर्भधमृत्पिण्डवत् सूक्ष्मकर्मस्कन्धानां सरसतया परस्परं दृढसम्बन्धकरणतो दुर्भेदीकृतानि 'सिलिट्ठीकयाई' श्लिष्टीकतानि लोहमूत्रबद्धाऽग्नितप्तलोहशलाकाकलापवत् निधत्तानीत्यर्थः 'खिलीभूयाई' खिलीभूतानि, अग्निसंतप्तलोहमुद्गरकुट्टित सूचीकलापवत् पिण्डीभूतानि भवन्ति, यानि भोगं विना उपायान्तरेण क्षपयितुमशसे चिकनाई-चिकाशके संबंधसे अत्यन्त स्निग्ध होने के कारण मृत्तिका का पिण्ड दुर्भद्य हो जाता है उसी प्रकार से जो कर्म सूक्ष्मकर्मों के रस के साथ परस्परगाढ संबंध करने के कारण दुर्भेद्य हो जाते हैं वे चिक्कजीकृत पापकर्म कहलाते हैं-ऐसे ही चिकणीकृत पापकर्म नारक जीवों के होते है। (सिलिट्ठीकयाइं ) जिस प्रकार लोहे के तार से मजबूत बांधकर अग्नि में तपायीं गई लोहे की शलियों परस्पर चिपक जाती हैफिर वे अलग नहीं हो सकती हैं, उसी प्रकार से जो कर्म आपस में एकमेक हो जाते हैं-जुदे नहीं किये जा सकते है-अर्थात् निधत्त हों वे पापकर्म श्लिष्टीकृत कहलाते हैं-ऐसे श्लिष्टीकृत पापकर्म नारक जीवों के होते हैं । (खिली भूयाई ) जो कम भोगे विना और किसी उपाय से नष्ट न किये जा सके अर्थात् निकाचित हो वे पापकर्म खिलीभूत कहलाते हैं ऐसे खिलीभूत पापकर्म नारक जीवों के होते हैं (अग्नि संतप्त लोहमुद्रकुट्टित सूचीकलापवत् पिण्डीभूतानि भवंति) यही बात इस દુર્ભેદ્ય બની જાય છે, એ જ પ્રમાણે જે કર્મો સૂફમકર્મોના રસની સાથે પરસ્પર ગાઢ સંબંધ થવાને કારણે દુર્ભેદ્ય બની જાય છે, એવાં કર્મોને ચીકણું પાપકર્મો કહે છે. નારક જીવનાં પાપકર્મો એવાં ચીકણાં હોય છે.
__" सिलिट्ठीकयाइ" वी शते सोढाना ताRथी भभूत मांधान निमा તપાવેલી લેઢિની સળીઓ એક બીજી સાથે ચૂંટી જાય છે અને તેમને પછી જુદી પાડી શકાતી નથી–એટલે કે જે પાપકર્મો નિધત્ત હોય છે તેને લિટ્ટીક્ત પાપકર્મો કહે છે. નારક જીનાં પાપકર્મો એવાં શિલષ્ટીકૃત હોય છે.
खिली भयाई" २ भनी सोगव्या विना-मी ४ ५ पायथी नाश થતું નથી, એવાં નિકાચિત કર્મોને ખિલીભૂત કહે છે. નારકનાં કર્મો એવાં ખિલીભૂત હેય છે.
श्री. भगवती सूत्र:४