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________________ भगवतीस्त्र भवेत् ? एतावता विशेषणत्रयेणापि दुर्विशोध्यत्वमुक्तम् । अपरपक्षमाह- कयरे वा वत्थे सुद्धोयतराए चेव ' कतरद् वा व कर्दमरागरक्तं वा, खञ्जनरागरक्तं वा, सुधौततरकं चैव, सुप्रक्षालिततरं स्यात् ? ' सुवामतराए चेव ' सुवाम्यतरकं चैव, सुप्रक्षाल्यकलङ्क स्यात् ? — सुपरिकम्मतराए चेव' सुपरिकर्मतरकं चैव, सुसाध्यचित्रलेखनभङ्गकरणादिप्रक्रियं स्यात् ? उक्तविकल्पविषयमाह -'जे वा से वत्थे कद्दमरागरत्ते, जे वा से वत्थे खंजनरागरत्ते? ' यद् वा तद् वस्त्रं कर्दमरागरक्तम् ? यद्वा तद्वस्त्रं खअनरागरक्तम् ? अनयोर्मध्ये किम् दुःशोध्यं किञ्च सुशोध्यं भवेदिति भगवत आशयः । उपयुक्तं भगवद्वचनं श्रुत्वा गौतमः कथयति 'भगवं तत्थ णं जे से वत्थे कदमरागरत्ते' हे भगवन् ! तत्र तयोर्वस्त्रयोमध्ये खलु साध्य हो-होगी इन तीन विशेषणों द्वारा ऐसे वस्त्र में दुविंशोध्यता प्रकट की गई है तथा ( कयरे वा पत्थे) कौनसा वन-(सुद्धोयतराए चेव) सुधौततरक होगा-जिसकी सफाई करना सरल हो-ऐसा होगा, (सुवामतराए घेव) लुवामतरक होगा-जिसमें से धब्बे आदि रूप कलङ्क सरलता से निकाला जा सके ऐसा होगा तथा (सुपरिकम्मतराए चेव) जिसमें चित्रोल्लेखन क्रिया एवं विशेष प्रकार की रचना करनेरूप क्रिया सुसाध्य हो ऐसा होगा अर्थात् (जे वा से वत्थे कद्दमरागत्ते, जेवा से वत्थे खंजनरागरत्ते ) इन वस्रों के बीच में जो वस्त्र कर्दमराग से रक्त है और जो वस्त्र खंजनराग से रक्त है, कौन सा वस्त्र दुःशोध्य होगा और कौन सा वस्त्र सुशोध्य होगा इस प्रकार से भगवान के द्वारा पूछे गये वचन को सुन करके गौतम ने उनसे कहा-(भगवं) हे भगवन् (तत्थ णं जे से वत्थे कद्दमरागत्ते) इन दोनों वनों में से जो वस्त्र વિશેષ દ્વારા એવા વસ્ત્રમાં દુર્વિધ્યતા (તેની સફાઈ કરવામાં મુશ્કેલી ) ५८ ४३री छे. तथा (कयरे वा वत्ये सुद्धोयतरार चेव ) : १४ सुधीतत२४ 8-मेट , ४ ने सो ७२पामा सरणता हेरी ! “सुवामतराए चेव" ४३॥ १७५२थी सजतायी ५ ६२ ४३0 0 ? “सुपरिकम्मतराए चेव" કયા વસ્ત્ર ઉપર ચિત્રાલેખન અને વિશેષ પ્રકારની રચના કરવી સુગમ થઈ ५01 श्री भावार्थ से छे , “जे वा से वत्थे कदमरागरत्ते, जे वा से वत्थे खंजनरागरत्ते " ४ १ २ डीयउयी ५२येसु छ भने भी વસ્ત્ર કે જે પતંગ રંગથી ખરડાયેલું છે, તેમાંથી કયું વસ્ત્ર શોધ્ય ( મુશ્કેલીથી સફાઈ કરી શકાય તેવું) હશે અને કયું સુશોધ્યા (સુગમતાથી सारी २५ ते) शे ? श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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