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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०५ ७०९ सू०४ पार्थापत्यीय-महावीरयोर्वक्तव्यता ७१७ वीरस्तव तस्मिन्नेव प्रदेशे उपागच्छन्ति ' उवागच्छित्ता' उपागत्य ' समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अदूरसामन्ते उचितस्थाने स्थित्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिषुः-पृष्ट. वन्त:-' से ]णं भंते ! असंखेज्जे लोए अणंता राइंदिया, उप्पग्जिसु वा, उप्पजंति वा, उप्पज्जिस्संति वा' हे भदन्त ! तद् नूनं निश्चयेन किम् असंख्येये असंख्यात प्रदेशात्मके लोके चतुर्दशरज्ज्वात्मके आधाररूपे अनन्तानि रात्रिदिवानि-अहोरात्ररूपाणि उदपद्यन्त वा, उत्पद्यन्ते वा, उत्पत्स्यन्ते वा ? 'विगच्छिसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा ? ' व्यगच्छन् वा-व्यतीतानि, विगच्छन्ति वा-व्यतियन्ति व्यतीतानि भवन्ति वा, विगमिष्यन्ति, व्यतिष्यन्ति वा ? तथा परित्ता राइंदिया उप्पजिसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा ? ' परीतानि -असंख्यातानि रात्रिंदिवानि उदपद्यन्त वा, उत्पद्यन्ते वा उत्पत्स्यन्ते वा ? 'विगवान् महावीर प्रभु विराजमान थे ( तेणेव उवागच्छंति ) उसी स्थानपर आये (उवागच्छित्ता) वहां पर आकर के (समणस्स भगवओ महावीर स्स अदरसामंते ठिच्चा एवं वयासी) वे श्रमण भगवान् महावीर के पास उचितस्थान पर बैठ गये-और फिर इस प्रकार से पूछने लगे-(से णणं भंते ! असंखेज्जे लोए अणंता राइंदिया उपजिप्सु वा उप्पज्जति वा, उपज्जिस्संति वा) हे भदन्त ! निश्चय से क्या असंख्येय-असं. ख्यातप्रदेशात्मक इस चौदह राजू की ऊँचाइ वाले लोक में अनन्त रात्रिदिवस उत्पन्न हुए हैं ? उत्पन्न होते हैं ? आगे भी क्या वे उत्पन्न होंगे ? (विगच्छिसु वा, विगच्छति वा, विगच्छिस्संति वा) इसी तरह से क्या वे नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और आगे भी नष्ट होंगे? तथा (परित्ता राइंदिया उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा, उपजिस्संति वा) परित-असंख्यात रात्रिदिवस इस लोक में उत्पन्न हुए हैं क्या ? उत्पन्न वीर विशनभान हता, “ तेणेव उपागच्छति" त्या माव्या. “उवागच्छित्ता" त्यां मावीन. (समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी) તેઓ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની પાસે ઉચિત સ્થાને બેસી ગયા, અને ત્યાર माह तभो तेमन मा प्रभारी प्रश्न पूछया-( से गूणं भते ! असंखेज्जे लोए अणता राईदिया उप्पन्जिसु वा, उप्पज्जति वा, उपज्जिस्सति वा ) महन्त ! અસંખ્યાત પ્રદેશેવાળ, ચૌદ રાજૂની ઊંચાઈવાળા આ લેકમાં શું અનંત રાત્રિદિવસ ઉત્પન્ન થયા છે એ વાત નિશ્ચિત છે? શું અસંત રાત્રિદિવસ ઉત્પન્ન थाय छ। शुभविष्यमा ५९ मत निसि पन्न थरी ? (विगच्छि'सुवा, विगच्छति वा, विगच्छिरसति वा) मेरा प्रमाणे शुमनात विहिवस नए थया छ १ नष्ट थाय छ १ भने लविष्यमा ५ नष्ट २१ तथा (परिता राई. श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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