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________________ ७०४ भगवतीसूत्रे सहस्र-पूर्वाङ्ग -पूर्व-त्रुटिताङ्ग-त्रुटिता-टटाङ्गा- टटा-ववाङ्गा- वव- हुहुकाङ्ग-हुहुकोत्पलाङ्गो -त्पल - पद्माङ्ग -पद्म -नलिनाङ्ग -नलिना-र्थनिपुराङ्गा-र्थनिपुरा-युताङ्ग-युत-नयुताङ्ग-नयुत- प्रयुताङ्ग-प्रयुत-चूलिकाङ्ग-चूलिका-शोर्षमहेलिकाङ्ग-शीर्षप्रहेलिका-पल्योपम-सागरोपमपर्यन्तं संग्राह्यम् भगवान् आह'णो इणढे समढे ' हे गौतम | नायमर्थः समर्थः, नैरयिका निरयवासिनः समयादिकविज्ञातुं नाहन्ति-इत्याशयः, गौतमः पृच्छति-' से केणटेणं जाव-समया इ वा,आवलिया इवा, ओसप्पिणी इ वा,उस्सप्पिणी इ वा' हे भदन्त ! तत् केना थेन यावत्-निरयस्थितैः नैरयिकैः समया इति वा, 'अयं समयपदार्थः' इत्येवंऋतु-अयन-संवत्सर-युग-वर्षशत-वर्षसहस्र-पूर्वाङ्ग-पूर्व-त्रुटितागटित-अटटाङ्ग-अटट-अववाह-अवव-हहकाङ्ग-हुहक-उत्पलाङ्क-उत्पल-पद्माङ्ग-पद्म-नलिनाग-नलिन - अर्थनिपुराण-अर्थनिपुर-अयुताङ्ग-अ. युत-नयुताङ्ग-नयुत, प्रयुताङ्ग-प्रयुत चुलिकाङ्ग-चूलिका-शीर्षप्रहेलिकाङ्गशीषप्रहेलिका-पल्योपम-सागगेपम ) इन सब का ग्रहण हुआ है। इमके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-(णो इणढे समठे) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है क्यों कि निरनिवासी नारक समय आदि को जानने के लिये किसी तरह जानने में समर्थ नहीं हैं। गौतम प्रभु के मुख से इस बात को सुनकर पुनःपूछते है कि (से केणटेणं जाव समयाइ वा, आवलियाइ वा, ओसप्पिणीड वा, उस्सप्पिणीइ वा) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वर्तमान में नारक ___महीं जाव' (यावत) ५४थी "माना), स्तो, प, भुत', महाशत्र, पक्ष, भास, *त. अयन, संवत्स२, युग, वर्षशत, १र्षसख, स, पूर्व, त्रुटितात, त्रुटित, मांग, म22, Aquin, अ११, हु , हुड, Grueix, Grua, ५, ५, नलिनin, नलिन, मनिपुरा, अर्थनिपुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, यूनिin, यूलिया, શીર્ષ પ્રહેલિકાંગ, શીર્ષ પ્રહેલિકા, પલ્યોપમ, સાગરેપમ.” આ પદેને ગ્રહણ કરવામાં આવ્યાં છે. मा प्रश्नने। पास मापता महावीर प्रभु ४३ छ-" णो इणट्रे समते" હે ગૌતમ ! એવું બની શકતું નથી, કારણ કે નરક ગતિમાં રહેલા નારક છે સમય આદિને જાણવાને કઈ પણ રીતે સમર્થ નથી. મહાવીર પ્રભુને આ પ્રકારને જવાબ સાંભળીને ગૌતમ સ્વામી તેને ४१२६५ तवाना देशथी मा प्रभारे प्रश्न पूछे छ-( से केणट्रेणं जाय समयाइवा, भावलियाइ वा, ओस प्पिणीइ बा, उस्स प्पिणीइषा १) महन्त ! माय શા કારણે એડ કહે છે કે નરક ગતિમાં રહેલાં નારક છે સમય, આવ श्री भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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