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________________ - - - प्रमेयचन्द्रिका टी-० ५३०९ १०३ नैरयिकादीमा समयाविधाननिरूपणम् ॥ इवा आवलिया इवा जावओसपिणी इवा,उस्स प्पिणी इवा?' तद्यथा-समया इति वा, इमे समयपदार्थाः इत्येवं विशिष्य नैरयिकै यिते किम् ? एवम् आवलिका प्रकर्षेण ज्ञायते किम् ? तथा यावत्-इयम् अवसर्पिणी प्रज्ञायते ? एवम् इयम् उत्सपिणी निरयवासिभिः किम् प्रज्ञापते ? इति प्रश्नाशयः, यावत्करणात्-आनमाणस्तोक-लव-मुहूर्ताऽहोरात्र-पक्ष-मास - प्रत्ययन-संवत्सर-युग-वर्षशत – वर्ष. ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि-(अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पन्नायए) हे भदन्त ! क्या बात संभवित हो सकती है-कि नारक जीवों द्वारा जो कि नरक स्थान में विद्यमान हैं यहां जाना जा सके कि यह (समयाइ वा, आवलियाइ चा जाव ओसप्पिणीइ वा उस्सप्पिणी वा) समय है यह असंख्यात समयसाध्य आवलिका है, यावत् यह १० कोडी कोडी सागरप्रमाण अवसर्पिणीकाल है, यह दश कोडाकोडी सागरप्रमाण उत्सर्पिणीकाल हैं। तात्पर्य इस सूत्र का यह है कि (ये समय पदार्थ हैं ) इस रूप से विशेषित होकर क्या नारक जीवों द्वारा समय जाने जाते हैं ? " यह आवलिका है" इस रूप विशेषित होकर क्या आवलिका नारक जीवों द्वारा जानी जाती है ? " यह अवसर्पिणी. काल है" इस रूप से विशेषित होकर क्या अवसर्पिणीकाल नारक जीवों द्वारा जाना जाता है ? " यह उत्सर्पिणीकाल है" इस रूप से विशेषित होकर क्या उत्सर्पिणीकाल नारक जीवों द्वारा जाना जाता यहां यावत्पद से (आनप्राण-स्तोक-लव-मुहूर्त्त-अहोरात्र-पक्ष-मासप्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे है ( अस्थिणं भंते ! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पन्नायए) હે ભદન્ત ! શું એ વાત સંભવિત છે કે નરકગતિમાં રહેલાં નારક જીવો દ્વારા 2 anga श४य छ है ( समयाइ वा, आवलियाइ वा, जाव ओसप्पिणीइ वा उस्सप्पिणीइ वा ?) मा समय छ, मा असभ्यात समयाथी मनेसी आव. લિકા છે, (કાવત) આ દસ કેડીકેડી સાગર પ્રમાણ અવસર્પિણી કાળ છે, આ દસ કોડાકડી સાગર પ્રમાણુ ઉત્સર્પિણી કાળ છે ? આ પ્રશ્નનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે- નારક જીવોને કાળના જુદા જુદા વિભાગનું જ્ઞાન હોય છે? “આ સમય પદાર્થ છે” આ પ્રમાણે સમજીને શું નારકો દ્વારા સમયને જાણવામાં આવે છે ? “ આ આવલિકા છે,” એવું જ્ઞાન નારકને હોય छे मई ? “ I Aqeffed छ, An Sत्सपिल ४५ छ,” मे સમજવાનું જ્ઞાન શું નારકને હેય છે ખરું? श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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