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भगवतीस इह तेषां प्रमाणम् , एवं प्रज्ञायते, तद्यथा समया इति वा, यावत्-उत्सर्पिणी इति वा, तत् तेनार्थेन। भवनपति वानव्यन्तर-ज्योतिषिक-वैमानिकानां यथा नैरयिकाणाम् ।। मू० ३ ॥ ____टीका-'अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पन्नायए' गौतमः पृच्छति हे-भदन्त ! अस्ति संभवति खलु तत्रगतानाम् , अत्र तृतीयार्थे पष्ठी तेन तत्रगतैः नरकस्थितैः नैरयिकैः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण प्रज्ञायते विज्ञायते यत्-'तं जहा-समया जानते हैं। (से केणटेणं) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (इह तेसिं माणं, इह तेसिं पमाणं एवं पन्नायए-तं जहा समयाइ वा जाव उस्सप्पिणीइ वा से तेणटेणं० ) इस मनुष्यलोक में ही उन समयादिकों का मान होता है यहीं पर उनका प्रमाण होता है और यहीं पर वे समयादिरूप से जाने जाते हैं कि यह समय है-यावत् यह उत्सर्पिणीकाल है। इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है वागमंतर, जो इस, वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं) जिम प्रकार से समयादिका ज्ञान नारक जीवों को नहीं होता है ऐसा कहा गया है उसी प्रकार वानव्यन्तर देवोंको, ज्योतिषिक देवोंको और वैमानिक देवोंको भी समयादिकका ज्ञान नहीं होता है ऐसाजानना चाहिये।
टीकार्थ-द्रव्य होने के कारण जिस प्रकार पुद्गलों का विचार किया गया है उसी प्रकार काल भी द्रव्य है-अतः पुद्गल विचार के बाद काल द्रव्य का विचार सूत्रकार इस सूत्र द्वारा कह रहे हैं-इसमें गौतम स्वामी 3 महन्त ! मा५ ॥ ४॥२५छ। १ (गोयमा ! ) 3 गौतम ! ( इह तेसिं माणे, इह तेसि पमाणं एवं पन्नायए-तजहा-समयाइवा, जाव उस्सप्पिणीइवा-से तेणढेण) मा भनुष्यभir ते समयाहार्नु भा५ डाय छ, અહીં તેમનું પ્રમાણ હોય છે, અને અહીં જ (આ મનુષ્યલેકમાં જ) તેમને સમયાદિ રૂપે ઓળખવામાં આવે છે. જેમકે “ આ સમય છે, (યાવતુ) આ उत्सपि ॥ छ. गौतम ! १२णे में धुं छे. ( बाणमंतर, जोइस, घेमाणियाणं जहा नेरइयाणं) २वी शते समय माहितुं ज्ञान नारान खातु નથી, એવી જ રીતે વાતવ્યન્તર દેવે, તિષિક દેવ અને વૈમાનિક દેવને પણ સમયાદિકનું જ્ઞાન હેતું નથી તેમ સમજવું.
ટીકાર્યું—દ્રવ્ય હોવાને કારણે જેવી રીતે પુલનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે, એવી રીતે કાળ પણ દ્રવ્ય હેવાથી, સૂત્રકાર પુલનું નિરૂપણ કર્યા પછી આ સૂત્રમાં કાળદ્રવ્યનું નિરૂપણ કરે છે-ગૌતમ સ્વામી મહાવીર
श्री. भगवती सूत्र : ४