SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 679
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका री० ० ५ ७०८ सू० ३ जीधादिवृद्धिहान्यादिनिरूपणम् ६६५ सोपचय-सापचयाः ? एवमेव । कियन्तं कालं निरुपचय-निरपचयाः ? गौतम ! जघन येन एक समयम् , उत्कर्षेण द्वादशमुहूर्तान् । एकेन्द्रियाः सर्वे सोपचयाः सापचयाः सर्वद्धाम् । शेषा सर्वे सोपचया अपि, सापचया अपि, सोपचय-सापचया अपि, निरुपचय-निरपचया अपि, जघन्येन एकं समयम् , उत्कर्षेण आवलिकायाः असंख्येय भागम् । अवस्थितेषु व्युत्क्रान्तिकालो भणितव्यः । सिद्धाः खलु हे गौतम ! पूर्वोक्त सोपचय के काल-प्रमाणानुसार इसका भी काल समझना चाहिये। (केवइयं कालं सोवचयसावचया) हे भदन्त ! नारक कितने कालतक सोपचय और सापचय होते हैं ? ( एवंचेव) हे गौतम ! इसका काल भी पूर्वोक्त काल के अनुसार ही है ऐसा जानना चाहिये। (केवइयं कालं निरुवचयनिरवचया ) हे भदन्त ! नारक जीव कितने कालतक निरुपचय और निरपचय रहते हैं ? (गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ता) हे गौतम ! जधन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से बारह मुहूर्त तक नारक जीव निरुपचय और निरपचय रहते हैं। (एगिदिया सव्वे सोवचया, सावचया सव्वद्धं, सेसा सव्वे सोवचया वि, सावचया वि, सोवचय-सावधया वि, जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजहभागं ) समस्त एकेन्द्रिय जीव सर्वकाल सोपचय और सापचय होते हैं। बाकी के सर्व जीवों में सोपचय सापचय और सोपचय सापचय का काल जघन्य एक समय और २ प्रभार मायुंछ मेरी २५५यय युस्ततार्नु ५४ प्रमाण सभापु. ( केवइय काल सोवचयसावचया ? हे महन्त ! ना२४ वटा ७ सुधी उपयय भने अ५ययवाज य छ ? ( एवं चेव ) 3 गौतम ! सनी ॥ ५५ ५५५ युतताना ४७ प्रमाणे समा . ( केवइय काल निरुवचय निरवचया १) 3 महन्त ! ना२। टस से सुधी ५-यय भने २५५३यथी सहित २७ छ ? (गोयमा ! जहण्णेण एक्कं समय उक्कोसेण बारसमुहु ।) હે ગૌતમ ! નારક છે ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં qधारे मा२ मुद्धृत अधी ५यय भने २५५२ययथी २डित २३ छे. (एगिदिया सव्वे सोवचया सावचया सम्बद्ध, सेसा सव्वे सोवचया वि, सावचया वि, सोवचयसावचया वि, जहण्णेण एक समय, उक्कोसेणं आवलियाए असखेज्जइभाग ) समस्त केन्द्रिय छ। साणे सो५यय मने सा५यय २७ છે. બાકીના સમસ્ત જીવમાં ઉપચય યુકતતા, અપચય યુકતતા, અને ઉપચય અપચય યુકતતાને કાળ ઓછામાં ઓ છે એક સમય અને વધારેમાં વધારે श्री. भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy