SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 660
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे मकारेण अवादीत्-'जीवाणं भंते ! किं वदंति, हायंति, अवट्ठिया ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवाः खलु किम् वर्धन्ते अधिका भवन्ति, अथवा हीयन्ते हासं प्राप्नुवन्ति न्यूना भवन्तीत्यर्थः, उताहो अवस्थिता यथावस्थिता एवं वृद्धि हान्योरभावावस्थायां तिष्ठन्ति ? भगवानाह- गोयमा ! जीवा णो वढंति, णो हायंति, अवट्ठिया' हे गौतम ! जीवा नो वर्धन्ते नाधिकाः भवन्ति, नो वा हीयन्ते न्यूना भवन्ति, अपितु अवस्थिता यथावस्थिता एव भवन्ति. पुनइन पुद्गलों द्वारा उपकृत हुए उपकार्य जीवों का निरूपण करते हैं, इसमें 'भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं जाव एवं वयासी' गौतम हे भदन्त ! इस प्रकार से संबोधित करके श्रमण भगवान महावीर से ऐसा पूछते हैं कि-' जीवाणं भंते ! किं वइंति, हायंति, अवट्ठिया' क्या जीव बढते हैं ?-अधिक होते हैं ? अथवा-होस को प्राप्त होते हैं ? कम होते हैं ? या वृद्धि और हानि के अभाव होने से वे ज्यों के स्यों रहते हैं ? अर्थात् इनमें वृद्धि और हानि थिल कुल नहीं होती है, इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-' गोयमा ! जीवा णो वड्डूंति णो हायंति, अवठिया ' हे गौतम ! जीव न बढते हैं, न घटते हैं किन्तु वे अवस्थित रहते हैं। इस प्रकार सामान्यजीव में वृद्धि हानि का अभाव प्रतिपादित करके अब सूत्रकार भिन्न २ पर्यायापन्न जीवों के विषय में इसी बात को विशेषरूप से प्रतिपादित करने के अभिप्राय से प्रश्नोत्तररूप में रमना 6५२ १५४१२ ३२वामा भाव छ सेवा वातुं नि३५९५ ४२ छ. (भते! त्ति भगवं गोयमे समर्ण जाव एवं वयासी) “ महन्त !" से शते समो. ધન કરીને ભગવાન ગૌતમ, શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે છે (जीवाणं भंते ! कि बड्दति, हायति, अवदिया १ 3 महन्त ! शुं योनी સંખ્યા વધે છે? કે તેમની સંખ્યા ઘટે છે? અથવા શું વૃદ્ધિ અને હાસ (હાનિ) ને અભાવ હોવાથી તેમની સંખ્યા એટલીને એટલી જ રહે છે? એટલે કે તેમનામાં શું બિલકુલ વધઘટ થતી નથી? महावीर प्रभु भा प्रशन पास भापत छ-(गोयमा जीवा णो षटति, णो हायति, अवद्विया) गौतम! वानी संभ्या यती नथी, ઘટતી પણ નથી, પણ અવસ્થિત ( જેટલી છે એટલી જ ) રહે છે. આ રીતે સામાન્ય છમાં વૃદ્ધિ, હાનિના અભાવનું પ્રતિપાદન કરીને હવે સૂત્રકાર જુદા જુદા પર્યાયમાં ઉત્પન્ન થયેલાં છોના વિષયમાં એજ વાતનું વિશેષ પ્રતિપાદન કરવાને માટે સૂત્રકાર નીચેનાં પ્રશ્નોત્તરે આપે છે– श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy