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भगवतीसो ___ अथ सप्रदेशमाह-'जे व्वओ सपएसे से खेत्तओ सिय सपएसे, मिय अपएसे ' यः पुद्गलः द्रव्यतो द्वन्यणुकादितया सप्रदेशः, स क्षेत्रतः स्यात् कदाचित् सप्रदेशः द्वयादिप्रदेशावगाहित्वात् , स्यान-कदाचित् अप्रदेशः, एकप्रदेशावगाहित्वात् , एवं कालो, भावओ वि ' एवम् उक्तरीत्यैव कालतो, भावतोऽपि विज्ञेयः । तथा च-यः पुद्गलो द्रव्यतः सप्रदेशः द्रयणुकादिरूपः स कालतः स्यात् कदाचित् सप्रदेशः द्वयादिसमयस्थितिकत्वात् , स्यात्-कदाचित् अप्रदेशः एकसमयरहता है उस हालत में यह भाव की अपेक्षा भी अप्रदेशी है और द्रव्य की अपेक्षा भी अप्रदेशी है। (जे दव्वओ सपएसे खेसओ सिय सपए से सिय सपएसे ) जो पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा सप्रदेश है वह क्षेत्र की अपेक्षा सप्रदेश भी हो सकता है और अप्रदेश भी हो सकता है-जैसे कोई द्वयणुकादिक स्कन्ध आकाश के द्वयादिक प्रदेशों में अवगाही होकर ठहरा हुआ है तो इस स्थिति में वह द्रव्य की अपेक्षा सप्रदेश होता हुआ भी क्षेत्र की अपेक्षा भी सप्रदेश है, और यदि वही द्वयणुकादि स्कन्ध आकाश रूप क्षेत्र के एक प्रदेश में अवगाहित होकर ठहरा हुआ है तो वह अप्रदेश है-द्वयादिक प्रदेशों से रहित है ( एवं कालओ भाव
ओ वि) इसी तरह से जो पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा सप्रदेश है वह काल की अपेक्षा सप्रदेश भी हो सकता है और अप्रदेश भी हो सकता है जैसे कोई व्यणुकादिक स्कन्धक जो कि द्रव्य की अपेक्षा से सप्रदेश है वह यदि द्वयादि समय की स्थिति वाला है तो वह द्रव्य की अपेक्षा
છે ત્યારે ભાવની અપેક્ષાએ પણ તે અપ્રદેશી હોય છે અને દ્રવ્યની અપેક્ષાએ ५] महेशी डाय छे. (जे दव्वओ सपएसे से खेत्तओ सिय सपएसे सिय अपएसे ) २ पुर द्रव्यनी अपेक्षा सोशी हाय छ, ते ५स क्षेत्रनी અપેક્ષાએ સપ્રદેશી પણ હોઈ શકે છે અને અપ્રદેશી પણ હોઈ શકે છે જેમકે કઈ બે અણુવાળ સ્કંધ આકાશના બે પ્રદેશોની અવગ હના કરીને રહેલ હોય, તે એ સ્થિતિમાં તે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ પણ પ્રદેશયુકતજ હોય છે અને ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ પણ પ્રદેશયુક્ત હોય છે. પણ જે બે અણુવાળો સ્કધ આકાશ રૂપ ક્ષેત્રના એક જ પ્રદેશની અવગાહના કરીને રહેલું હોય, તે તે प्रशाथी २डित &N. ( एवं कालो भावओ वि) मेरी प्रभारी दस દ્રવ્યની અપેક્ષાએ પ્રદેશયુક્ત હોય છે, તે કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશયુક્ત પણ હોઈ શકે છે અને પ્રદેશ રહિત પણ હેઈ શકે છે. જેમકે કોઈ એક બે અણુવાળ સ્કંધ કે જે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ સપ્રદેશી છે, તે જે બે, ત્રણ આદિ
श्री. भगवती सूत्र:४