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प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ५ उ० ७ सू० ८ हेतुस्वरूपनिरूपणम् ५५७ नमरणं म्रियते करोति, मिथ्याष्टित्वेन सम्यग्ज्ञानरहितत्वात् , ५ ।
अथ मिथ्यादृष्टयपेक्षयैव हेतून प्रकारान्तरेणाह-पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहाहेउणाण जाणइ,जाव-हेउणा अन्नाणमरणं मरई' पञ्च हेतवः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-हेतुना न जानाति, नञः कुत्सार्थकतया असम्यक्तया साध्यम् अवगच्छति, यावत्-हेतुना न पश्यति,असम्यकपश्यति, हेतुना न बुध्यते असम्यक्तया श्रद्धत्ते, हेतुना न अभिसमागच्छति,असम्यकतया प्राप्नोति, हेतुना अज्ञानमरणं कुत्सितमरणं म्रियते करोति ।
अथ हेतुव्यतिरेकेण अहेतून् प्रतिपादयितुमाह-पंच अहे ऊ पणत्ता,तं जहा अहेतुं मरण करता है वह पांचवां हेतु है। मिथ्यादृष्टि के होने के कारण सम्यग्ज्ञानी के यह होता नहीं है अतः इसके मरण को अज्ञानमरण कहा गया है। ___ अब सूत्रकार पुनः मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा से ही हेतुओं का प्रकारान्तर से प्रतिपादन करते हैं-(पंच हेऊ पण्णत्ता) हेतु पांच कहे गये हैं-(तं जहा ) जो इस प्रकार से हैं-"हेउणा ण जाणइ जाव हेउणा अन्नाणमरणं मरइ" यहां पर "न" का प्रयोग कुत्सा-निंदा अर्थ हुआ है-अतः जो असम्यक् रूप से साध्य को हेतु द्वारा जानता है, असम्यक रूप से जो हेतु द्वारा देखता है, असम्यक् रूप से जो साध्य को हेतु द्वारा प्राप्त करता है, अप्रशस्त हेतु से युक्त अज्ञानमरण कुत्सितमरण जो करता है इस प्रकार ये पांच हेतु हैं । ___ अब हेतुओं से भिन्न जो अहेतु हैं उनका प्रतिपादन सूत्रकार करते हैं(पंचअहेऊ पण्णता) हे गौतम ! पांच अहेतु कहे गये हैं-यहाँ केवली भगઅધ્યવ્યવસાય આદિ હેતુ સહિત અજ્ઞાન મરણ મરવું તે પાંચમો હેતુ છે. આ પ્રકારનું મરણ સમ્યજ્ઞાની મરતે નથી, પણ મિથ્યાદૃષ્ટિ જ આવું મરણ (मज्ञान भ२६५ ) प्रात ४२ छे.
હવે સૂત્રકાર મિથ્યાષ્ટિને અનુલક્ષીને બીજી રીતે હેતુઓનું પ્રતિપાદન ४रे छ. (पंच हेऊ पण्णत्ता) तु पांय ४i छ, (तजहा) २ मा प्रमाणे छ-(हे उणा ण जाणइ, जाव हे उणा अन्नाणमरणं मरइ) सही ५५ 'न' नो प्रयोग કુત્સા (નિંદા) ના અર્થમાં થયો છે. તેથી જે અસમ્યક રૂપે સાબને હેતુ દ્વારા જાણે છે, અસભ્ય રૂપે સાધ્યને હેતુ દ્વારા દેખે છે, જે અસમ્યક રૂપે સાધ્યની હેતુ દ્વારા શ્રદ્ધા કરે છે, જે અસમ્યક રૂપે સાધ્યને હેતુ દ્વારા પ્રાપ્ત કરે છે, અને જે અપ્રશસ્ત હેતુથી યુક્ત અજ્ઞાન-મરણને પ્રાપ્ત કરે છે, એવા પાંચ હેતુ સમજવા. હેતુઓથી વિપરીત એવા અહેતુઓનું સૂત્રકાર હવે प्रतिपादन ४३ छ-(पंच अहेऊ पण्णत्ता) गौतम पांय अतु छ, ( तंजहा ) २ मा प्रमाणे छे.
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪